हिंदी में लिंगभेद पर जो छोटा सा सर्वेक्षण हमने किया था उसके परिणाम बिना किसी हील-हुज्जत के सामने रख रहा हूँ. विश्लेषण और चर्चा का काम आप पर छोड़ता हूँ.
सर्वे में पूछा यह गया था कि आप दही, गाजर, प्याज, आत्मा, चर्चा, धारा, ब्लॉग, ईमेल, और गिलास को पुल्लिंग की तरह प्रयोग करते हैं या स्त्रीलिंग की तरह. 19 से लेकर 60 वर्ष तक की आयु वाले कुल 39 लोगों ने अपने जवाब भरे. इनमें से 28 की मातृभाषा हिंदी थी, 11 की कोई और. गैर मातृभाषियों में 5 अमेरिका से, और 1-1 इटली, केरल, पंजाब, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, और उत्तराखंड से थे.
मातृभाषियों के उत्तर
हिंदी मातृभाषियों में सबसे अधिक दुविधा प्याज और ईमेल के लिंग के बारे में दिखी. प्याज को स्त्रीलिंग बताने वालों में 5 उत्तरप्रदेशी, 3 मध्यप्रदेशी, और 1 दिल्ली वाले थे. उत्तरप्रदेश के 35% और बिहार, उत्तराखंड, और महाराष्ट्र के सभी हिंदी मातृभाषियों ने गाजर को पुल्लिंग बताया; सभी मध्यप्रदेश और राजस्थान वालों ने स्त्रीलिंग. दिलचस्प बात है कि ईमेल को पुल्लिंग बताने वालों में भी बिहार, उत्तराखंड, और महाराष्ट्र के सभी हिंदीभाषी शामिल थे. आत्मा, चर्चा, धारा के स्त्रीलिंग होने पर लगभग सभी एकमत थे. इसी तरह ब्लॉग और गिलास के पुल्लिंग होने पर भी एक राय दिखी. राजस्थान के सभी हिस्सा लेने वाले आत्मा के अलावा सभी शब्दों पर एकमत दिखे. इसी तरह दिल्ली वालों में दही और प्याज को छोड़कर बाकी सभी के लिंगों पर सहमति दिखी.
गैर-मातृभाषियों के उत्तर
गैर हिंदी मातृभाषियों में ब्लॉग (पु.), प्याज (पु.), और धारा (स्त्री.) पर लगभग सहमति दिखी. आत्मा और धारा के स्त्रीलिंग होने पर सभी अमेरिकी एकमत थे. पंजाब और इटली के वोटों के अनुसार आत्मा पुल्लिंग है. गाजर केरल, महाराष्ट्र, और मध्यप्रदेश के वोटों में पुल्लिंग था तो उत्तराखंड, पंजाब, और इटली के वोटों में स्त्रीलिंग थी. दही को केरल और मध्यप्रदेश के गैर मातृभाषी वोटों ने स्त्रीलिंग माना. चार्ट यह रहा:
अब देखें कि शब्दकोश क्या कहते हैं. फ़िलहाल प्लैट्स के हिसाब से देखते हैं. यह प्रतिष्ठित शब्दकोश ऑनलाइन भी उपलब्ध है. ध्यान रखने की बात यह है कि प्लैट्स 100 साल से ज़्यादा पुराना है और संभव है कि कुछ लिंग प्रयोग इन सालों में बदल गए हों. इसके अलावा ईमेल या ब्लॉग जैसे नए शब्द भी इससे नदारद होंगे. अगर आपके पास दूसरे शब्दकोश हों और उनमें भिन्न राय हों तो ज़रूर लिखें. तो देखें प्लैट्स महाशय क्या कहते हैं.
दही - पुल्लिंग - H दही dahī, corr. धई dhaʼī [Prk. दहिअं; S. दधि+कं], s.m.
गाजर - पुल्लिंग और स्त्रीलिंग - H गाजर gājar, (rustic) गाजिर gājir [Prk. गज्जरं; S. गर्जरं], s.f. & m.
प्याज - स्त्रीलिंग - P piyāz, s.f. Onion;
यहाँ देख सकते हैं कि न केवल शब्द का उच्चारण और वर्तनी बदल गये हैं, बल्कि अधिकतर हिंदीभाषी अब इसे पुल्लिंग बरतते हैं. एक रुचिकर बात - हिंदी का कांदा पुल्लिंग है और देखा गया है कि आयातित शब्दों के लिंग निर्धारण में पहले से मौजूद समानार्थक शब्द के लिंग का गहरा प्रभाव होता है.
आत्मा - पुल्लिंग और स्त्रीलिंग - S आत्मा ātmā, s.m.f.
चर्चा - शब्दार्थ भेद के अनुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग - H चर्चा ćarćā [S. चर्चकः, rt. चर्च्]
चर्चा के दो अर्थ हैं. अपने पहले अर्थ अफ़वाह या "Popular talk" के मायनों में यह पुल्लिंग है. पर अपने दूसरे अर्थों बहस, विचार-विमर्श, या "mention" के लिए प्रयोग में यह स्त्रीलिंग है.
धारा - स्त्रीलिंग - S धारा dhārā, s.f.
धारा का पुल्लिंग प्रयोग उर्दू में आम है. आप सबने शकील बदायूँनी का वो गाना ज़रूर सुना होगा - तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा..
तो ये थे हिंदी लिंगभेद सर्वेक्षण के परिणाम. सर्वेक्षण मेरे लिए मज़ेदार और ज्ञानवर्द्धक रहा. भाग लेने वालों का शुक्रिया. और जो बिना भाग लिए भाग लिए उन्हें तख़लिया.
Friday, March 07, 2008
कच्ची गाजर, पक्का गाजर
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Thursday, March 06, 2008
"यह पाकिस्तानी परंपरा नहीं है"
फ़िल्मों की भाषा आम तौर पर एक बड़े व्यापक वर्ग को ध्यान में रखकर लिखी जाती है. ख़ासकर अगर विषय-वस्तु ऐतिहासिक या आंचलिक न हो. कोशिश यह दिखती है कि ऐसे लफ़्ज़ों का इस्तेमाल हो जो पूरे देश (और विदेश) के लोग समझ पाएँ. पर टीवी में दर्शकवर्ग अधिक केंद्रित होता है. और इसी वजह से टीवी की भाषा में आम तौर पर ऐसे शब्द मिल जाते हैं जो लक्षित क्षेत्र-विशेष के बाहर के लोगों के लिए अपरिचित होते हैं.
पर अब सैटेलाइट के ज़माने में टीवी अपनी क्षेत्रीय प्रसारण सीमाओं से आज़ाद हो चुका है. हिंदी टीवी के कार्यक्रम अमेरिका, खाड़ी क्षेत्र, और पाकिस्तान में भी रुचि से देखे जाते हैं. और इस फैलाव के साथ ही फैल रहे हैं शब्द. इसमें कोई शक नहीं कि एक आम हिंदीभाषी की उर्दू शब्दावली बढ़ाने में फ़िल्मों और फ़िल्मी गानों का बहुत हाथ रहा है. अब ऐसा ही कुछ पाकिस्तान में हिंदी शब्दावली के लिए टीवी कर रहा है. एक दिलचस्प लेख में देवीरूपा मित्रा लिखती हैं,
"A quick survey of Pakistanis, particularly the young and women in cities, showed that they were familiar with some of the more difficult Hindi words.
"Sometimes, I find myself saying, 'yeh Pakistani parampara nahin hai' (this is not Pakistani tradition), which causes my husband to look at me strangely," said Nadia Bano, a 32-year-old Islamabad housewife.
[...]
"On a Pakistani web forum debating the "Indian invasion" through TV soaps and films, a netizen wrote, "To learn the other dialect all a Paki need do is to watch STAR Plus and he'll pick up Sanskrit vocabulary".
"He listed several words that he had picked up by watching Indian entertainment channels - parivar (family), parampara (tradition), prarthana (prayer), puja (worship), shanti (peace), dharam (religion), aatmahatya (suicide) and pradhan mantri (prime minister)."
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Wednesday, March 05, 2008
प्रश्नोत्तरंग
जब तक इंटरनेट लोगों के घर तक, उनकी अपनी भाषा में, आसान रूप में नहीं पहुँचता (कभी पहुँचेगा भी?), तब तक के लिए एक उपाय - क्वेश्चन बॉक्स.
परिकल्पना बड़ी सीधी है - लोग इसके जरिये एक ऑपरेटर को फ़ोन कर अपने सवाल पूछते हैं, ऑपरेटर इंटरनेट से उनके जवाब ढूँढ़ कर उन्हें वापस बताता है. ये बक्से प्रयोग के तौर पर अभी दिल्ली के पास, नोयडा के बाहर, दो कस्बों में लगाए गए हैं.
कल कोरी डॉक्टरो ने बोइंग बोइंग पर इसका ज़िक्र किया है. मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि बड़े पैमाने पर इसका काम कर पाना मुश्किल होगा. यह तरीका शहरों या बड़े कस्बों के लिए मुझे बहुत कुशल नहीं लग रहा. आप क्या सोचते हैं?
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2007 के RMIM पुरस्कार घोषित
इस ब्लॉग के संगीत प्रेमी पाठकों को याद होगा कि कुछ अर्से पहले मैंने यहाँ RMIM पुरस्कार के लिए नामांकन आरम्भ की घोषणा की थी. क़रीब दो महीने की नामांकन और ज्यूरी अंकन प्रक्रिया के बाद अब नतीजे सामने हैं. साल 2007 की हिंदी फ़िल्मों के कुछ चुनिंदा गानों, एल्बमों, और कलाकारों की सूची आपके लिए प्रस्तुत है.
एक ख़ास बात - इस बार ज्यूरी में हिंदी में ब्लॉग लिखने वाले और आपके सुपरिचित दो चिट्ठाकार भी शामिल थे. नाम का अंदाज़ा लगाना कुछ ख़ास मुश्किल नहीं है पर मैं बता देता हूँ - मनीष और यूनुस. उन्हें शुक्रिया.
परिणाम हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में उपलब्ध हैं. इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया आप गीतायन ब्लॉग की परिणाम घोषणा प्रविष्टि के कमेंट बक्से में कर सकते हैं या यहीं पर. कड़ी फिर से ये रही:
RMIM पुरस्कार 2007 परिणाम
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Friday, February 29, 2008
पढ़ाई में सबसे तेज़ बच्चे फिनलैंड के
सत्तावन देशों में फैले क़रीब पन्द्रह साल के बच्चों की एक परीक्षा में फ़िनिश बच्चे दुनिया में सबसे तेज़ बच्चों में से पाए गए. ये टेस्ट विज्ञान, गणित, और रीडिंग (वाचन) विषयों में लिए गए थे. भारत उन देशों में शामिल नहीं था जहाँ ये परीक्षा ली गई पर बस्तों और माँ-बाप की आशाओं के बोझ से दबे भारतीय बच्चों की दशा से मुझे कोई ख़ास उम्मीद नहीं है. अमेरिकी विद्यार्थी विज्ञान में 29वें क्रम पर रहे और गणित में 35वें पर.
यह जानना रुचिकर होगा कि फ़िनलैंड में हाइ-स्कूल के बच्चे रोज़ मुश्किल से आधे घंटे का होमवर्क पाते हैं और बच्चों का स्कूल में दाखिला 7 साल से पहले नहीं होता.
वालस्ट्रीट जर्नल ने इस पर आज एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. उसमें से सिर्फ़ एक बात जो सोचने का मसाला देती है:
One explanation for the Finns' success is their love of reading. Parents of newborns receive a government-paid gift pack that includes a picture book. Some libraries are attached to shopping malls, and a book bus travels to more remote neighborhoods like a Good Humor truck.
Finland shares its language with no other country, and even the most popular English-language books are translated here long after they are first published. Many children struggled to read the last Harry Potter book in English because they feared they would hear about the ending before it arrived in Finnish. Movies and TV shows have Finnish subtitles instead of dubbing.
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Wednesday, February 27, 2008
दही खट्टा है या खट्टी?
हाल में फ़्रेंच बोलने वालों पर किए गए एक छोटे सर्वेक्षण में पता चला कि फ़्रेंच भाषियों में शब्दों का लिंग पहचानने की प्रवृत्ति घट रही है. छप्पन लोगों पर किए गए इस परीक्षण में 14 वयस्क और 42 टीनएजर (13-19 वर्ष) थे जिनकी मातृभाषा फ़्रांसीसी थी. पचास स्त्रीलिंग संज्ञाओं का लिंग पूछने पर टीनएजर केवल 1 पर सहमत हो पाए.
हिंदी में भी (फ़्रेंच की तरह ही) लिंग के अनुसार संज्ञाएँ दो तरह की होती हैं - पुल्लिंग या स्त्रीलिंग. हालाँकि अधिकतर हिंदी भाषियों को लिंग पहचानने में कोई खास समस्या नहीं आती, हिंदी सीखने वालों और हिंदी को दूसरी भाषा की तरह बोलने वालों के लिए यह पहचान हमेशा परेशानी की वजह रही है. विज्ञान और तकनीक संबंधी नए शब्दों के हिंदी में आने पर ये दुविधा मातृभाषियों में भी पैदा होती है. इसके अलावा कभी कभी आंचलिकता की वजह से भी लिंग प्रयोग अलग-अलग होते हैं.
आइये, एक छोटा-सा सर्वे हम भी करते हैं. नीचे दी कड़ी पर क्लिक कीजिए और बताइये आप इन कुछ शब्दों को किस लिंग में इस्तेमाल करते हैं.
अगर आप सर्वे में दिए गए शब्दों जैसे और शब्द जानते हों तो अपनी प्रतिक्रिया में ज़रूर लिखें. सर्वेक्षण परिणाम के लिए ब्लॉग देखते रहें.
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Friday, February 22, 2008
लिंग्वा फ़्रैंका, पर कब तक?
निकॉलस ऑस्लर Foundation for Endangered Languages के चेयरमैन हैं और Empires of the Word: A Language History of the World और Ad Infinitum: A Biography of Latin किताबों के लेखक. फ़ोर्ब्स के भाषा विशेषांक में लिखे अपने एक हालिया लेख में उन्होंने अंग्रेज़ी के भविष्य पर टिप्पणी की है.
उनका मानना है कि अगर लिंग्वा फ़्रैंकाओं (संपर्क भाषाओं) के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि जो 60 करोड़ लोग आज अंग्रेज़ी को दूसरी-भाषा के तौर पर इस्तेमाल करते हैं और इसे सबसे बड़ी संपर्क भाषा बनाते हैं, वही लंबी अवधि में इसके लिए नुकसानदायक होंगे.
संपर्क भाषा या लिंग्वा फ़्रैंका उन लोगों के बीच संवाद की भाषा होती है जिनकी मातृभाषाएँ अलग हों. पुरानी संपर्क भाषाओं में वे लैटिन, क्वेच्वा, फ़ारसी, और अरमेक को गिनाते हैं और आधुनिक युग में स्पैनिश, फ़्रांसीसी, हिंदी, रुसी, और अंग्रेज़ी को.
उनके अनुसार भाषाओं के 5000 साल के दर्ज इतिहास से ये बात स्पष्ट होती है कि संपर्क भाषाओं का फैलाव किसी सुविधा गणित या जनतांत्रिक चुनाव के जरिये नहीं होता, न ही भाषा की सुंदरता या बहाव की वजह से. इसके पीछे हमेशा एक विशेष प्रयासपूर्ण कारण होता है जिसे भुलाना - और अक्सर माफ़ कर पाना - मुश्किल होता है.
ऐतिहासिक संपर्क भाषाओं की बात करते हुए वे कहते हैं:
There was status or wealth to be gained from knowing these languages, and in their heyday, no one believed they might one day go out of use. After all, they seemed not only useful, but also such exceptional languages. Latin--alone of western languages--had grammatica, an analysis of all its rules; French was regulated by an Academy, which would ensure the quality of its substance. Likewise, English, with its simple sentence-structure and openness to borrowed vocabulary, is often thought well suited to be a global medium
पर उनका कहना है कि ये भाषाएँ विचार संप्रेषण का माध्यम मात्र रहने की बजाय अपने फैलाव का बिल्ला लगाए घूमती हैं; और यही अन्ततः उनके पतन का कारण होता है.
Akkadian spread beyond the Assyrian empire on the strength of its pictograph-based cuneiform writing, but then yielded to Aramaic, a language combining widespread use with an alphabetic script. Sogdian, once spoken by merchants and divines from Samarkand to China, could not survive the decline of the Silk Road trade. And in Europe, Latin in the 9th to 16th centuries and French in the 17th to 20th centuries depended on educated elites. Wide use of those languages declined when power passed into other hands.
आज की वैश्विक संपर्क भाषा के बारे में उनका मानना है कि जैसे जैसे झुकाव राजनैतिक लोकतंत्रीकरण की ओर होगा, अंग्रेज़ी का विश्वव्यापी प्रयोग कम होगा, क्योंकि यह सीधे सीधे एलीट (उच्च/कुलीन/संभ्रांत) वर्ग, जोकि अंग्रेज़ी के मुख्य प्रयोक्ता हैं, के स्टेटस को कम करेगा. कहते हैं,
[...] This has already happened. With independence achieved after the Second World War, Tanzania, Sri Lanka, Malaysia and the Philippines all downgraded their official use of English. In India, too, English is beginning to lose its stranglehold on enterprise and education: In February, a major business newspaper in Hindi was launched, likely the first of many. The massive current expansion in Indian higher education (aimed at increasing participation from 10% to 15%) will also lessen the proportion of citizens who are educated in English as opposed to Hindi or another mother tongue.
पूरा लेख पढ़ें.
Tuesday, January 15, 2008
RMIM पुरस्कार 2007 के लिए वोटिंग शुरू
2007 के RMIM पुरस्कार के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जो लोग इन पुरस्कारों के बारे में न जानते हों उन्हें बता दूँ कि ये पुरस्कार हिंदी फ़िल्म संगीत के लिए इंटरनेट पर मौज़ूद संगीत चर्चा समूहों और वृहत्तर हिंदी फ़िल्म संगीत प्रेमियों के चयनों पर आधारित होते हैं और सबके लिए खुले हैं.
आप अपने चयन पुरस्कार मुखपृष्ठ पर दर्ज़ कर सकते हैं. वोटिंग के लिए पर्याप्त जानकारी साइट पर ही उपलब्ध है. अधिकतर अंग्रेज़ी लेबलों और निर्देशों को उन पर माउस घुमाकर हिंदी में भी देखा जा सकता है. इस बारे में ज़्यादा और ताज़ा जानकारी के लिए गीतायन ब्लॉग देखें.
* पिछले साल के परिणाम भी देखें.
Friday, November 23, 2007
दिल्ली वालों के लिए
११ दिसम्बर २००७ को दो से पाँच बजे शाम को चिट्ठेबाज़ी के ऊपर कार्यशाला है। पता है, सराय-सीएसडीएस, 29, राजपुर रोड दिल्ली 110054, मूल घोषणा यहाँ छपने में थोड़ा समय लग सकता है। मूल घोषणा के अनुसार कोई भी सीखने सिखाने में दिलचस्पी रखने वाला इसमें शामिल हो सकता है। और जानकारी राकेश से मिलेगी।
वालो या वालों?
Tuesday, October 30, 2007
अंग्रेज़ी के माथे एक मौत
On October 22, a 22-year-old second-year B.Tech student of the IEC Engineering College Noida, hanged himself. The suicide note Brajesh Kumar left behind in the room he shared with another student in Tughlakpur village said that he was doing this because he could not cope with the courses being taught in English and that he did not want to burden his family with paying another hefty amount towards special English coaching classes.
हालाँकि यह प्रतिक्रिया अतिवादी है और मैं इसे बिल्कुल ठीक नहीं मानता, यह अंग्रेज़ी के मुद्दे की गंभीरता बयान करती है. उच्च शिक्षा का माध्यम मातृभाषा से अलग होना भारत की कई पीढ़ियों के करोड़ों छात्रों का सिरदर्द रहा है.
मृणाल पांडे का समाधान है कि अंग्रेज़ी को सरकारी स्कूलों की प्राथमिक क्लासों में अनिवार्य विषय बना दिया जाए. मेरा मानना है कि हालाँकि वह भी होना चाहिए (क्योंकि अंग्रेज़ी के साधारण ज्ञान की वर्तमान उपयोगिता से कोई इंकार नहीं कर सकता) पर ज़्यादा ज़रूरी यह है कि उच्च शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा हो. आधुनिक तकनीकी विषयों पर अच्छी गुणवत्ता की पठन पाठन सामग्री स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध हो. स्कूलों में पढ़ाई गई भाषा कितना भी कर ले एक माध्यम के तौर पर उस भाषा का स्थान नहीं ले सकती जो प्राकृतिक तौर पर बोलकर सीखी जाती है. और संवाद के तौर पर तो कतई नहीं.
आश्चर्य इस बात का है कि ऐसा अभी तक हुआ क्यों नहीं. क्या हिंदी का बाज़ार अभी भी इतना बड़ा नहीं कि वह हिंदी में शिक्षा की माँग कर सके? या यह उस छोटे, पर ताकतवर, अंग्रेज़ी समाज के प्रतिरोध की वजह से है ताकि वह शेष भारत की प्रतिद्वंदिता से बच सके और अपना प्रभुत्व बनाए रख सके? या बस इस पर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया? क्या बिना कुछ और ब्रजेश कुमारों की आत्महत्याओं के इस बारे में कोई नहीं सोचेगा? आखिर कब तक ज्ञान 80% लोगों के लिए मुश्किल बना रहेगा?
आप क्या सोचते हैं?
Friday, October 19, 2007
इस ब्लॉग के पाँच साल
कोई यूँ ही सा दिन रहा होगा
ख़ब्त थी शायद या ज़रूरत रही हो
बहरहाल मुश्किल से दो मिनट लगे थे
इस ब्लॉग के जन्म में
विचार से निर्माण का सफ़र
तभी छोटा हो चुका था
फिर एक-एक दो-दो कर
इकट्ठा होने लगी पोस्टें
और चलने लगे इस ब्लॉग के दिन
महीनों की गठरी में सिमटे
कभी मिनट-मिनट में बँटे
कभी हफ़्तों-हफ़्तों कूदते
कभी किसी बोर फ़िल्म-से लंबे
कभी शाम को शुरू होते
और यूँ चलते-चलते
आज 60 गठरियाँ बँधी हैं
दूर की सोच के इस दौर में
जब नज़रें आगे, बस आगे देखने की अभ्यस्त हो गई हैं
कभी-कभी (पर बस कभी-कभी)
पीछे मुड़ कर देखना
अच्छा लगता है
चमकती स्क्रीन पर लटके
इन गहरे स्याह अक्षरों में
स्याही की ख़ुशबू भले न हो
नॉस्टॅल्जिया ज्यों का त्यों मौजूद है
डायरी के पन्ने पलटने का मज़ा
माउस की क्लिकों से बेशक नदारद है
पर तख़लीक़ की तकलीफ़
वैसी की वैसी है
ये अक्षर भी उतने ही अ-क्षर हैं
बल्कि शायद कुछ ज़्यादा ही
क्योंकि काग़ज़ी हर्फ़ों की तरह
इनके धुँधले पड़ने का कोई ख़तरा नहीं
लीजिए कहाँ उलझ गया
आया तो आपको धन्यवाद कहने था
आपको शायद पता न हो
(मुझे भी देर से महसूस हुआ)
पर इस यात्रा की लगातारी में
आपका योगदान सबसे बड़ा है
इसलिए, शुक्रिया!
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Thursday, October 11, 2007
उदाहरण.परीक्षा
ताज़ा अपडेट (15 अक्टूबर) - http://उदाहरण.परीक्षा अब परीक्षण के लिए चालू है. अगर यह कड़ी काम नहीं करती तो यहाँ क्लिक करें (और बेहतर होगा कि अपना ब्राउजर बदल लें या नवीनीकृत कर लें). परीक्षण का खुलासा करता हुआ एक विडियो भी है.
ख़बर है कि नए बहुलिपि डोमेन नामों के परीक्षण के लिए हिंदी डोमेन होगा - उदाहरण.परीक्षा. इन परीक्षण डोमेनों को 9 तारीख को रूट सर्वरों पर जोड़ दिया गया. परीक्षण विकी की कड़ियाँ आइकैन की वेबसाइट पर 15 अक्टूबर को प्रकाशित की जाएँगी.
लगे हाथों एक और ख़बर - आइकैन की 31वीं अंतरराष्ट्रीय बैठक अगले साल 10-15 फरवरी को नई दिल्ली में होगी.
Friday, October 05, 2007
हिंदी और तमिळ में डोमेन नाम
परसों विंट के मुँह से सुना और आज ख़बर अख़बार में थी. अनुनाद ने भी आज इसका ज़िक्र किया है.
अगले साल के अंत तक पूरे के पूरे डोमेन नाम (टीएलडी यानि शीर्ष-स्तर डोमेन नाम समेत) लैटिन के अलावा 11 अन्य लिपियों में प्रयोग किए जा सकेंगे. भारतीय लिपियों में हिंदी (देवनागरी) और तमिळ को इस शुरुआती दौर के लिए चुना गया है.
परीक्षण इसी 15 अक्टूबर से शुरू हो जाएगा, जब आइकैन व्यक्तियों और व्यापारों को इसे जाँचने के तरीके मुहैया कराएगा. अभी हालाँकि इन नामों के पंजीकरण तो शुरू नहीं होंगे, पर आपसी संवादों, ई-मेल, वेब कड़ियों में इन्हें इस्तेमाल किया जा सकेगा. आइकैन के अनुसार एक तरह से पूरी दुनिया को इस प्रणाली को तोड़ने के लिए आमंत्रित किया जाएगा. आप भी तैयार रहिएगा :).
नागरी के मामले में कुछ बातें हैं जिन्हें परखने के लिए मैं उत्सुक रहूँगा. मसलन भिन्न कूटांको वाले पर एक से दिखने वाले हिंदी शब्दों को यह सिस्टम कैसे सँभालेगा. यह जानना भी दिलचस्प होगा कि हिंदी में .com या .org आदि डोमेनों को कैसे लिखा जाएगा.
क़दम स्वागत योग्य है, भले ही ज़रा देर से उठा है. उस दिन का इंतज़ार रहेगा जब सिर्फ़ नागरी जानने वाला एक व्यक्ति "गूगल.कं.भारत", "वेब.बीबीसीहिंदी.कॉम" या "भारत.सरकार" जैसा कुछ टाइप कर भी इन गंतव्यों पर पहुँच पाएगा.
Thursday, October 04, 2007
इंटरनेट के जन्मदाताओं के साथ एक शाम
इंटरनेट के आविष्कार की कहानी बॉब कॉन और विंट सर्फ़ से सुनने को मिले, इसे मैं बतौर इंटरनेटजीवी एक दुर्लभ सुख कहूँगा. ये सुख कुछ-कुछ ऐसा ही है जैसा शायद कोई टेलीकॉम इंजीनियर खुद ग्राहम बेल से टेलीफ़ोन की निर्माणगाथा या कोई संस्कृतज्ञ खुद पाणिनी से संस्कृत व्याकरण की रचना के बारे में सुन कर अनुभव करेगा.
जो न जानते हों उनके लिए बता दूँ कि ये दोनों "इंटरनेट के जनक" माने जाते हैं. दोनों ने मिलकर नेट के मूलभूत प्रॉटोकॉल टीसीपी/आइपी का आविष्कार किया था. उसके बिना आज का जीवन कैसा होता इस सोच में जाना तो काफ़ी समय माँगता है, हाँ इतना तो कम से कम कह ही सकता हूँ कि आप मेरा ये लिखा न पढ़ रहे होते.
कल बॉब और विंट शहर (वाशिंगटन, डीसी) में थे. अमेरिका के नेशनल आर्काइव्स (राष्ट्रीय अभिलेखागार) में आयोजित एक चर्चा में दोनों ने करीब डेढ़ घंटे तक खुलकर बात की. हालाँकि चर्चा का मुख्य विषय "इंटरनेट गवर्नेंस की बहस" था, दोनों इंटरनेट के शुरुआती दौर (सत्तर के दशक) के किस्सों से लेकर नेट के भविष्य पर अपने विचारों समेत कई मुद्दों पर बोले. नेशनल आर्काइव्स के छोटे से मैकगॉवन थियेटर में करीब 200 लोग थे जिनमें अमेरिकी सरकार के नुमाइंदे और डीसी इंटरनेट सोसाइटी के सदस्य मुख्य थे. कार्यक्रम के मध्यस्थ थे आर्काइव्स फ़ाउंडेशन के चेयरमैन टॉम व्हीलर.
इस सवाल के जवाब में कि क्या हम आज इंटरनेट को कुशलता से (एफ़िसियंटली) प्रयोग कर रहे हैं, विंट का कहना था नहीं. कई ऐसे परिदृष्य हैं जहाँ ऐसा नहीं हो रहा है. मसलन डाउनलोड और अपलोड बैंडविड्थ में अंतर. उनका कहना था कि पहले ये ठीक था क्योंकि शुरुआती दौर में निर्माता/प्रकाशक कम थे और उपभोक्ता ज़्यादा. पर अब ब्लॉगों और यू-ट्यूब के ज़माने में हर कोई निर्माता है. इस अंतर को समझ कर हमें बदलाव करने होंगे.
बॉब का कहना था कि मैं इस प्रश्न को बहुत महत्वपूर्ण नहीं मानता. जबकि बैंडविड्थ लगभग असीमित है, कुशलता या एफ़िसियंसी हमारी प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए. हमारी प्राथमिकता फ़ंक्शनॅलिटी होनी चाहिये.
बॉब का जवाब मुझे एक और संदर्भ में दिलचस्प लगा. मेरे ख़याल से उनकी ये बात हिंदी के लिए यूनिकोड मानक के उपयोग (ख़ासकर मोबिल यंत्रों पर) के पक्ष में जाती है. यूनिकोड, एस्की जैसे सरल कूटकरणों के मुकाबले ज़्यादा संसाधन (मुख्यतः बैंडविड्थ) माँगता है, पर हिंदी और अन्य ग़ैर-लैटिन लिपियों के लिए अब सवाल संसाधनों का नहीं, सुविधा का होना चाहिये.
निकट भविष्य के बारे में विंट का कहना था कि आइपी6 को लागू करना पहली प्राथमिकता है क्योंकि 2010 तक आइपी4 के पते ख़त्म हो जाएँगे. इसके अलावा उन्होंने बताया कि 2008 में अन्य लिपियों में डोमेन नाम भी पूरी तरह काम करना शुरू कर देंगे.
बॉब ने डारपा (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की संस्था, जहाँ इंटरनेट का आविष्कार हुआ) छोड़ने के बाद एक नॉन-प्रॉफ़िट संस्था सीएनआरआइ शुरू की और अब उसके अध्यक्ष व सीईओ हैं. विंट इन दिनों गूगल के उपाध्यक्ष और चीफ़ इंटरनेट इवैंजलिस्ट (प्रचारक) हैं. इसके अलावा 2000 के बाद से वे आइकैन बोर्ड के चेयरमैन भी हैं.
सेलफ़ोन से कुछ तस्वीरें ली थीं. बहुत अच्छी तो नहीं हैं पर पोस्ट करूँगा ये रहीं.
Wednesday, September 26, 2007
अंग्रेज़ी न बोलने वाला भारत
राजदीप सरदेसाई "ट्वेंटी-20 विश्व कप" की भारतीय जीत में हिंदी और भारतीय भाषाओं का बदलता रुतबा देख रहे हैं. उनका कहना है कि महानगरों के बाहर का भारत, अंग्रेज़ी न बोलने वाला भारत अब राष्ट्रीय पटल पर ज़्यादा तेज़ी और मुखरता से उभर रहा है. लेख दिलचस्प है और उस तस्वीर पर ध्यान दिलाता है जिसके बारे में अंग्रेज़ी मीडिया में अक्सर बात नहीं होती. पेश है उनके लेख से संबंधित अंश.
In 1983, those who worked in the non-English media were seen as lesser beings: they got far lower salaries, their rooms were smaller, their stories attracted scant attention. How, after all, could you compare an Oxbridge educated editor with someone from Chaudhary Charan Singh university? Today, quite remarkably, there has been a dramatic change: Hindi TV journalists can demand a price in the marketplace, the energy and robustness of Hindi channels is to be admired (even if it is misdirected at times), and most news networks acknowledge that their Hindi channel viewership is more important than their English audience. A Hindi journalist can no longer be dismissed as an ignorant vernacular; he is now seen as the person with a ear to the ground.हमारा अंग्रेज़ीदाँ समाज, जो अभी भी अधिकतर क्षेत्रों में प्रभुत्व जमाए है, भारतीय भाषाओं के प्रति या तो प्रतिरोधक रवैया रखता है या उदासीन. भारतीय भाषाओं और इसके बोलनेवालों की वह मुखरता जो राजदीप देख रहे हैं इस प्रतिरोध के बावजूद है. बरसों के बाद अपनी भाषा में जीने और अपनी बात रखने के मौके और मंच उन लोगों को बाज़ार और तकनीक ने दिये हैं, शासकों और मालिकों ने नहीं. उनकी सफलता प्रतिकूल परिस्थितियों में संघर्ष से प्राप्त की गई सफलता है.
A similar change can be seen in the IITs. In 1983 they were populated by English-speaking graduates. Today’s young IITians come from small towns, their English imperfect, but their educational achievements second to none. The rules of admission remain the same.
आज़ादी और प्रगति का एक महत्वपूर्ण मापदंड है स्वावलंबन. भाषा उसकी पहली सीढ़ी है. भाषा का स्वावलंबन देश की प्रगति की शुरुआत होनी चाहिये, उसकी पूर्णता नहीं.