कोई यूँ ही सा दिन रहा होगा
ख़ब्त थी शायद या ज़रूरत रही हो
बहरहाल मुश्किल से दो मिनट लगे थे
इस ब्लॉग के जन्म में
विचार से निर्माण का सफ़र
तभी छोटा हो चुका था
फिर एक-एक दो-दो कर
इकट्ठा होने लगी पोस्टें
और चलने लगे इस ब्लॉग के दिन
महीनों की गठरी में सिमटे
कभी मिनट-मिनट में बँटे
कभी हफ़्तों-हफ़्तों कूदते
कभी किसी बोर फ़िल्म-से लंबे
कभी शाम को शुरू होते
और यूँ चलते-चलते
आज 60 गठरियाँ बँधी हैं
दूर की सोच के इस दौर में
जब नज़रें आगे, बस आगे देखने की अभ्यस्त हो गई हैं
कभी-कभी (पर बस कभी-कभी)
पीछे मुड़ कर देखना
अच्छा लगता है
चमकती स्क्रीन पर लटके
इन गहरे स्याह अक्षरों में
स्याही की ख़ुशबू भले न हो
नॉस्टॅल्जिया ज्यों का त्यों मौजूद है
डायरी के पन्ने पलटने का मज़ा
माउस की क्लिकों से बेशक नदारद है
पर तख़लीक़ की तकलीफ़
वैसी की वैसी है
ये अक्षर भी उतने ही अ-क्षर हैं
बल्कि शायद कुछ ज़्यादा ही
क्योंकि काग़ज़ी हर्फ़ों की तरह
इनके धुँधले पड़ने का कोई ख़तरा नहीं
लीजिए कहाँ उलझ गया
आया तो आपको धन्यवाद कहने था
आपको शायद पता न हो
(मुझे भी देर से महसूस हुआ)
पर इस यात्रा की लगातारी में
आपका योगदान सबसे बड़ा है
इसलिए, शुक्रिया!
Friday, October 19, 2007
इस ब्लॉग के पाँच साल
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22 comments:
बधाई हो विनय...पाँच सालों के इस लंबे सफर को पूरा करने के लिए।
बधाई और धन्यवाद
पाँच साल पूरे होने पर मेरी हार्दिक बधाई. इस सुन्दर ब्लागिया कविता के लिये भी बहुत बहुत बधाई.
अनेकों शुभकामनायें-ऐसे ही कई बरस पूरे होते चलें खुशी खुशी आनन्द उत्सव मनाते.
पांच साल!!
बधाई
धन्यवाद
शुभकामनाएं
कविता मस्त है!!
पांच साल!!
बधाई
धन्यवाद
शुभकामनाएं
कविता मस्त है!!
अहा, पांच साल हो गए..... बधाई...
दिल से फूटी ये पंक्तियां वाकई कविता-सी लगती हैं।
पाँच साल पहले तो न सोचा होगा कि आज कविता लिख रहे होगे। बधाई हो।
बढि़या कविता, और 5 साला जलसे की बधाई स्वीकारें।
पार्टी कहां कब हो रही है?
विनय जी, बहुत अच्छे। बहुत बहुत बधाई। कविता भी सहज-सुन्दर है, पूर्णत: स्वाभाविक।
वास्तव में यह आनन्द और उल्लास का दिन है, पाँच वर्ष का समय। कम नहीँ होता... पर बीत जाता है, जैसे कल की ही हो बात! तब और भी अच्छा लगता है, जैसे सफर पूरा करने के बाद आप मानचित्र पर देखें सफर के पड़ावों को, उनके बीच की दूरियों को...
यह सब मेरा अनुमान ही है। वास्तविकता कैसी हो, आप बेहतर जानते हैं।
एक सुखद आश्चर्य और एक गदगद संतोष !
कोई तो है, जो आगे बढ़ा था . पांच पूरे हुए तो पचास भी होंगे . हिन्दी तो हिंदी वालों से भी उपेक्षित होती रही है और ब्लागिंग, बाप रे बाप ! यह तो उनके लिये जैसे आसमान से गिरने
जैसा अनुभव होता है . फ़ालतू आदमी है, यह सब ख़ुराफ़ात करने का समय कैसे मिलता है, जैसी टिप्पणियां हमारा स्वागत करती हैं . समझाना पड़ता है, ब्लागर बोले तो........
ऎसे में आपके समर्पण के पांच साल एक मील का पत्थर है .
बधाई स्वीकार करें , गुरुवर !
मैं तो अनुनाद जी के सहारे IDN पर आया और ज़नाब रतलामी के विवेचन में प्रयुक्त कूट शब्द V9Y के रहस्य को भेदने की मंशा से यहां
तक आ सका . वन्डरलैंड में डिज़्नी ने जो कुछ भी अनुभव किया हो, मेरा अनुभव आह्लाद से भी कईगुणा बढ़ कर है .
बधाई देना भी कमतर लग रहा है.
चलिये सुपर-बधाईयां !!
आपके चिट्ठे ने हिन्दी चिट्ठाजगत का बिना किसी शोर-शराबे के शान्तिपूर्ण ढंग से मार्गदर्शन किया है। इस अर्थ में इस चिट्ठे का जन्म सार्थक सिद्ध हो चुका है। इसके साथ ही इससे और भी अशायें हैं..
पाँच वर्ष पूरे होने पर 'हिन्दी' को आगे की यात्रा के लिये शुभकामनायें।
बधाई स्वीकारें. पार्टी तो बनती ही है. नौ साल हो गए और अभी भी ब्लॉगिया रहें है. बड़ी बात है. लगी लत छुटती नहीं और कमबख्त छोड़ना भी कौन चाहता है :)
पूनः बधाई व शुभकामनाएं. कविता अच्छी है.
कभी सोचा था, हिन्दी ब्लॉगर दिन दूनि बढ़ेंगे?
बहुत बहुत बधाई
मेरी तरफ से भी हार्दिक बधाई विनय भैया।
आप हिन्दी चिट्ठाकारी के पायनियर्स में से हैं। आपका आज भी चिट्ठाकारी में सक्रिय होना हमारे लिए खुशी की बात है।
आशा है आगे भी आपका स्नेह बना रहेगा। कविता अच्छी लगी, एकदम मन से निकली है।
@ मनीष, मैथिली जी, समीर लाल जी, संजीत, सृजन, महाशक्ति, उन्मुक्त, सागर - बहुत बहुत धन्यवाद.
@ आलोक - उस वक्त अगर पता होता कि ऐसी कविताएँ लिखने पर आ जाऊँगा तो तभी बंद कर देता :).
@ रवि - वर्च्वल दुनिया की पार्टियाँ भी तो वर्च्वल ही होनी चाहिए. तो आइए स्वागत है. :)
@ राजीव - आपने सही कहा. ब्लॉग पर चीज़ें दर्ज करते रहने का यही फ़ायदा है. यह कम से कम आपके व्यक्तिगत इतिहास की कई बातों को गुम होने से बचाता है. हर पोस्ट के साथ एक पूरे का पूरा संदर्भ जुड़ा होता है.
@ डॉक्टर साहब - आपका स्वागत और सुपर बधाइयों के लिए सुपर शुक्रिया. आप बहुत दरियादिल लगते हैं.
@ अनुनाद - ये बात तो मुझे आपके बारे में सच लगती है. मैंने तो किया ही क्या है जो उसका हल्ला करता. आपने तो कितना काम चुपचाप किया है और करते जा रहे हैं.
@ संजय - नौ में तो एक ब्लॉगर-जन्म बीत जाएगा :), अभी तो पाँच ही हुए हैं. शुरुआत में शायद कुछ नहीं सोचा था. अकेला था तो कभी ख़याल ही नहीं आया. ब्लॉग वैसे भी नई विधा थी, कम से कम हिंदुस्तानियों के लिए. फिर हिंदी में कंप्यूटर पर ज़्यादा लिख पाना भी तकलीफ़ का काम था. कोई कारण नहीं था सोचने का कि वैसे में बहुत लोग हिंदी में ब्लॉग लिखेंगे. पर चीज़ें बदलीं. और बाद में आए लोगों ने तकलीफ़ों को अपने संकल्प से छोटा बना दिया.
@ श्रीष - मैं यहाँ आपसे पहले ज़रूर आया हो सकता हूँ पर उससे हिंदी चिट्ठाकारी में कोई विशेष फ़र्क पड़ा हो ऐसा कुछ नहीं है. लंबे दौर में देखा जाए तो महत्वपूर्ण यह नहीं कि आप कब लिखते हैं बल्कि यह है कि आप क्या लिखते हैं.
बहुत अच्छा लग रहा है यह पोस्ट और ये टिप्पणियां पढना। बड़ी सनसनी है 5 वर्षों के हिन्दी के ब्लॉग में ब्लॉग सफर की!
बहुत बहुत बधाई।
@ ज्ञानदत्त जी - बधाई के लिए शुक्रिया. सनसनी और इस चिट्ठे में तो ३६ का आँकड़ा रहा है. अगर आपको दिखी तो इसका मतलब अब जाकर कुछ ब्लॉगिंग आने लगी है :).
I really liked ur post, thanx for sharing. Keep writing. I discovered a good site for bloggers check out this www.blogadda.com, you can submit your blog there, you can get more auidence.
वाह भाई वाह । आप भी क्या लिखते हैं ।
badhaaii vinayjii.
सही मौके पर मस्त पंक्तियां.. बड़ी-लड़ी कविताई पर भारी.. रहें यूं ही जारी.. हम सब आभारी..
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