चौपटस्वामी कुछ दिनों से चल रहे एक अन्तरचिट्ठीय विवाद, जो मुख्यतः मोहल्ला नामक एक सामूहिक चिट्ठे को लेकर है, पूछते हैं,
इस घृणा की पैदावार का क्या किया जाए? इसका उत्तरदायी यदि मोहल्ला है तो उसका क्या उपचार होना चाहिए. किसी भी ब्लौग को नारद पर बैन करना इसका सबसे आसान उपाय दिखता है. पर मैं स्वयं उनमें से एक हूं जो सिद्धांततः प्रतिबंध के खिलाफ़ हैं. तब क्या किया जाए?
मैं इस मुद्दे पर हस्तक्षेप से बचता रहा हूँ. मुख्यतः इसलिए कि मैं इसे कोई मुद्दा ही नहीं मानता. दूसरे कारण के लिए फ़ैज की शरण लेता हूँ, "और भी हैं ग़म हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा". फिर भी अपने क़रीब 10-साला इंटरनेटीय जीवन और 5-वर्षीय ब्लॉगीय अनुभवों से निकले ये कुछ विनम्र सुझाव प्रस्तुत हैं.
पहले तो ये समझा जाए कि इंटरनेट के संदर्भ में "बैन" एक ऑक्सीमॉरोन है. इसका गम्भीर उपयोग सिर्फ़ वही करते हैं जो इंटरनेट के बारे में ज़्यादा नहीं जानते.
उसके बाद ये कि इंटरनेट पर रेटिंग के मामले में बदनाम जैसी कोई चीज़ नहीं होती. जिसके बारे में जितनी ज़्यादा बातें होंगी उसकी खोजप्रियता उतनी ही अधिक होगी.
तीसरा ये कि ब्लॉगों से ब्लॉग संकलक (नारद, हिंदीब्लॉग्स, या टेक्नोरैटी) हैं, उनसे ब्लॉग नहीं. अगर कोई ब्लॉग किसी संकलक मसलन नारद से हटाया जाता है तो उससे नारद की उपयोगिता ही कम होती है.
आख़िर में ये कि ऐसे झगड़े दिखाते हैं कि हिंदी ब्लॉग जगत अभी शैशवावस्था से बाहर नहीं निकला है. ब्लॉगों की संख्या पर्याप्त रूप से बढ़ने के बाद ऐसे झगड़ों का कोई अर्थ नहीं रहेगा.
चिट्ठों की संख्या एक सीमा से बढ़ जाने के बाद हर चिट्ठे को किसी साइट द्वारा संकलित कर पाना (और पाठक के लिए पढ़ पाना) मुश्किल होता जाता है, धीरे-धीरे असंभव. फिर लोग व्यक्तिगत पसंद के हिसाब से अपनी-अपनी फ़ीड-सूचियाँ बना लेते हैं और उन्हें किसी फ़ीड-रीडर में पढ़ते हैं. सूची आपकी, पसंद आपकी.
देर-सवेर नारद और बाक़ी संकलकों को उपयोगी रह पाने के लिए निजानुरूपता (पर्सनलाइज़ेशन) की सुविधा देने की तरफ़ बढ़ना होगा. रोज़ाना लिखे जाने वाले चिट्ठों की संख्या 200 पार होते-होते ये समस्या आने लगेगी.
तब तक के लिए, और बाद के लिए भी, इंटरनेट समूहों के गोल्डन रूल यानि गुरूमंत्र को काम में लें - ट्रॉल को कभी भाव मत दो.
अगर ट्रॉल नामक जीव से आपका परिचय न हो तो करा देता हूँ.
ट्रॉल (संज्ञा) - ट्रॉल वह व्यक्ति है जो किसी ऑनलाइन समुदाय में संवेदनशील विषयों पर जान-बूझकर अपमानजनक या भड़काऊ संदेश लिखता/ती है, इस उद्देश्य से कि कोई उस पर प्रतिक्रिया करेगा/गी.
ऐसी भड़काऊ प्रविष्टियों को भी ट्रॉल कहा जाता है (आप चाहें तो ट्रॉली कह सकते हैं) और इस क्रिया को ट्रॉलन.
तो इस ट्रॉल को पहचानिए और अनदेखा कीजिए. ये काम आप नारद और हिंदीब्लॉग्स पर भी कर सकते हैं और किसी ऑनलाइन या ऑफ़लाइन फ़ीड-रीडर में अपनी फ़ीड-सूची बनाकर भी. मेरी राय में इससे ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत भी नहीं है.
9 comments:
बहुत सही.. कह दी पते की बात..
एक बेहतरीन सुझाव.
उन्मुक्त इसे अपना कर सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त कर ही चुके हैं और मैंने तो इसे पहले से ही अपनाया हुआ है!
भली बात कही..
सत्यवचन महाराज! आज स्वामीजी ने इसी विषय पर प्रवचन दिया! आपके विचार भी जाने! भाव न देने की बात से सहमति है!
इस बात से सहमति है कि नज़रंदाज कर देना इस समस्या का सबसे कारगर उपाय है, लेकिन तकनीकी और क़ानूनी उपाय भी हैं और होने चाहिए, जिन्हें जरूरत पड़ने पर प्रयोग में लाया जा सके।
इंटरनेट मानवजनित तकनीक ही है, कोई मायावी अलौकिक चीज नहीं, जिसके नियंत्रण एवं नियमन की क्षमता मानव के पास न हो। दुष्टता का जीवन अल्पकालिक होता है, उसे सज्जनता से परास्त होना पड़ता है। लेकिन सज्जन यदि दुष्टता को नजरंदाज करने लगें तो दुष्टता को हावी होने का अवसर मिल जाता है।
आपने इंटरनेट के अनुभवी और विशेषज्ञ के रूप में अपनी बातें कही हैं। लेकिन सायबर लॉ में कुछ ऐसे विशेषज्ञ भी हैं जो जितना वेब तकनीक को जानते हैं उतना ही क़ानून को भी। मुखौटाधारी और अनाम ट्रालियों को ट्रैक कर पाना तकनीकी और क़ानूनी रूप से असंभव नहीं है।
इससे संबंधित कुछ बातें मैंने चौपटस्वामी और ई-स्वामी के चिट्ठे पर भी टिप्पणी में कही हैं और एक पोस्ट भी लिख रहा हूं अपने चिट्ठे पर।
उचित बात है ।
एकदम सही कहा मैं तो बहुत पहले से यही काम कर रहा हूँ।
"तीसरा ये कि ब्लॉगों से ब्लॉग संकलक (नारद, हिंदीब्लॉग्स, या टेक्नोरैटी) हैं, उनसे ब्लॉग नहीं. अगर कोई ब्लॉग किसी संकलक मसलन नारद से हटाया जाता है तो उससे नारद की उपयोगिता ही कम होती है."
मैं इससे सहमत नहीं आप इसे वक्ती मामला समझिए लेकिन आज की तारीख में नारद के सहारे के बिना किसी ब्लॉग का चलना मुश्किल है। नारद के बिना मैंने कई ब्लॉग दम तोड़ते देखे हैं। आज से कुछ समय बाद भले ही यह तस्वीर बदले पर आज का सच यही है।
आपको याद होगा एक महाशय आए थे खूब फूं-फां करते हुए कि भईया हटा लो नारद से मेरा ब्लॉग मुझे इसकी कोई जरुरत नहीं, नारद से हटते ही ४ पोस्टों के बाद उनका ब्लॉग ठप पड़ गया। इसी तरह तमाम अश्लील चिट्ठे भी कुछेक पोस्टों के बाद बंद हो गए।
koi mare ko ye batayega ki main hindi main comment kaise karu?
ज्योति,
कुछ तुरत-फुरत के उपाय तो ये रहे -
http://www.giitaayan.com/x.htm
http://kaulonline.com/uninagari/index.htm
http://quillpad.com/Hindi
बाक़ी अपने कम्प्यूटर को हिंदी टाइपिंग के लिए तैयार करने के लिए यहाँ देखें -
http://en.wikipedia.org/wiki/Wikipedia:Enabling_complex_text_support_for_Indic_scripts
Post a Comment