Thursday, October 04, 2007

इंटरनेट के जन्मदाताओं के साथ एक शाम

इंटरनेट के आविष्कार की कहानी बॉब कॉन और विंट सर्फ़ से सुनने को मिले, इसे मैं बतौर इंटरनेटजीवी एक दुर्लभ सुख कहूँगा. ये सुख कुछ-कुछ ऐसा ही है जैसा शायद कोई टेलीकॉम इंजीनियर खुद ग्राहम बेल से टेलीफ़ोन की निर्माणगाथा या कोई संस्कृतज्ञ खुद पाणिनी से संस्कृत व्याकरण की रचना के बारे में सुन कर अनुभव करेगा.

जो न जानते हों उनके लिए बता दूँ कि ये दोनों "इंटरनेट के जनक" माने जाते हैं. दोनों ने मिलकर नेट के मूलभूत प्रॉटोकॉल टीसीपी/आइपी का आविष्कार किया था. उसके बिना आज का जीवन कैसा होता इस सोच में जाना तो काफ़ी समय माँगता है, हाँ इतना तो कम से कम कह ही सकता हूँ कि आप मेरा ये लिखा न पढ़ रहे होते.

कल बॉब और विंट शहर (वाशिंगटन, डीसी) में थे. अमेरिका के नेशनल आर्काइव्स (राष्ट्रीय अभिलेखागार) में आयोजित एक चर्चा में दोनों ने करीब डेढ़ घंटे तक खुलकर बात की. हालाँकि चर्चा का मुख्य विषय "इंटरनेट गवर्नेंस की बहस" था, दोनों इंटरनेट के शुरुआती दौर (सत्तर के दशक) के किस्सों से लेकर नेट के भविष्य पर अपने विचारों समेत कई मुद्दों पर बोले. नेशनल आर्काइव्स के छोटे से मैकगॉवन थियेटर में करीब 200 लोग थे जिनमें अमेरिकी सरकार के नुमाइंदे और डीसी इंटरनेट सोसाइटी के सदस्य मुख्य थे. कार्यक्रम के मध्यस्थ थे आर्काइव्स फ़ाउंडेशन के चेयरमैन टॉम व्हीलर.

इस सवाल के जवाब में कि क्या हम आज इंटरनेट को कुशलता से (एफ़िसियंटली) प्रयोग कर रहे हैं, विंट का कहना था नहीं. कई ऐसे परिदृष्य हैं जहाँ ऐसा नहीं हो रहा है. मसलन डाउनलोड और अपलोड बैंडविड्थ में अंतर. उनका कहना था कि पहले ये ठीक था क्योंकि शुरुआती दौर में निर्माता/प्रकाशक कम थे और उपभोक्ता ज़्यादा. पर अब ब्लॉगों और यू-ट्यूब के ज़माने में हर कोई निर्माता है. इस अंतर को समझ कर हमें बदलाव करने होंगे.

बॉब का कहना था कि मैं इस प्रश्न को बहुत महत्वपूर्ण नहीं मानता. जबकि बैंडविड्थ लगभग असीमित है, कुशलता या एफ़िसियंसी हमारी प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए. हमारी प्राथमिकता फ़ंक्शनॅलिटी होनी चाहिये.

बॉब का जवाब मुझे एक और संदर्भ में दिलचस्प लगा. मेरे ख़याल से उनकी ये बात हिंदी के लिए यूनिकोड मानक के उपयोग (ख़ासकर मोबिल यंत्रों पर) के पक्ष में जाती है. यूनिकोड, एस्की जैसे सरल कूटकरणों के मुकाबले ज़्यादा संसाधन (मुख्यतः बैंडविड्थ) माँगता है, पर हिंदी और अन्य ग़ैर-लैटिन लिपियों के लिए अब सवाल संसाधनों का नहीं, सुविधा का होना चाहिये.

निकट भविष्य के बारे में विंट का कहना था कि आइपी6 को लागू करना पहली प्राथमिकता है क्योंकि 2010 तक आइपी4 के पते ख़त्म हो जाएँगे. इसके अलावा उन्होंने बताया कि 2008 में अन्य लिपियों में डोमेन नाम भी पूरी तरह काम करना शुरू कर देंगे.

बॉब ने डारपा (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की संस्था, जहाँ इंटरनेट का आविष्कार हुआ) छोड़ने के बाद एक नॉन-प्रॉफ़िट संस्था सीएनआरआइ शुरू की और अब उसके अध्यक्ष व सीईओ हैं. विंट इन दिनों गूगल के उपाध्यक्ष और चीफ़ इंटरनेट इवैंजलिस्ट (प्रचारक) हैं. इसके अलावा 2000 के बाद से वे आइकैन बोर्ड के चेयरमैन भी हैं.

सेलफ़ोन से कुछ तस्वीरें ली थीं. बहुत अच्छी तो नहीं हैं पर पोस्ट करूँगा ये रहीं.

11 comments:

Srijan Shilpi said...

वाकई, यह ऐतिहासिक और दुर्लभ अनुभव रहा होगा। संक्षेप में ही सही, इंटरनेट से जुड़ी बहुत महत्वपूर्ण बातें आपने हमारे साथ साझा कीं। कुछ और विस्तार से कभी इन पक्षों पर सरल भाषा में बता सकें तो और अच्छा रहेगा।

जब तक यह दुनिया रहेगी और इंटरनेट, चाहे वह कितने ही उन्नत रूप में क्यों न हो जाए, बॉब और विंट के योगदान को आदर के साथ याद किया जाता रहेगा।

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया इसे हमारे साथ साझा करने के लिए!

Udan Tashtari said...

हम उनको जानते है जो उन्हें सुन आये, यही अहसास ही बहुत सुखकर है. आपकी अनुभूति को समझ सकता हूँ. बहुत बधाई और आभार इस संस्मरण को बांटने का.

काकेश said...

अच्छा लेख रहा. दोनों के बारे में जानना और उनकी चिंताओं से परिचित होना नयी जानकारियां दे गया. धन्यवाद आपको.

नूर की बात, रौशनी की बात said...

आप तो बहुत खुशकिस्मत है।
रश्क होता है आपसे!

Anonymous said...

विनयजी , काम की , अद्यतन और सामयिक चर्चा से अवगत कराया । शुक्रिया।

Anonymous said...

अनुभव व जानकारी हमारे साथ बाँटने के लिए शुक्रिया. समझ सकता हूँ आपने कैसा अनुभव किया होगा. आज इंटरनेट कम से कम हम जैसे लोगो के लिए जीवा-दोरी जैसा हो गया है.

तो अभी कुछ साल और प्रतिक्षा करनी पड़ेगी अपनी साइट का पता हिन्दी में भरने के लिए...कुछ साल और सही. :)

v9y said...

@ नूर:
बेशक हुज़ूर. कुछ ऐसा हाल था कि ग़ालिबन,
"देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाये है
मैं उसे देखूँ भला कब मुझसे देखा जाये है"
:)

@ संजय:
"जीवा-दोरी". आह! आप कभी कभी इतने ख़ूबसूरत शब्द इस्तेमाल करते हैं कि जिसोरा हो जाता है.

@ बाक़ी सभी:
अच्छा लगा कि आपको अच्छा लगा.

ePandit said...

वाह विनय जी, आपको यह सौभाग्य मिला। आपसे इस बारे में जानना रुचिकर रहा। धन्यवाद यह जानकारी हमसे बांटने के लिए।

Priyankar said...

तुसी लक्की हो जी . होर हमको भी लक्की बणा दिया जी खबर साझा करके .

Raj said...

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