भारत सरकार का नया पोर्टल
किनके लिए?
जो अंग्रेज़ी नहीं पढ़ते-लिखते, वे सरकार की नज़रों में भारतीय नहीं या फिर इंटरनेट के योग्य नहीं?
पूछिए ज़रा
Friday, November 11, 2005
Monday, October 31, 2005
अमृता प्रीतम नहीं रहीं। एक सप्ताह के अन्तराल में भारतीय साहित्य के दो युगों का अन्त हो गया।
अँधेरे का कोई पार नहीं
मेले के शोर में भी खामोशी का आलम है
और तुम्हारी याद इस तरह
जैसे धूप का एक टुकड़ा...
- अमृता प्रीतम (१९१९-२००५)
Saturday, October 29, 2005
सन २००२ में संडे ट्रिब्यून के साथ निर्मल वर्मा के साक्षात्कार (अंग्रेज़ी में) का एक अंश:
[...]
Q. Some of your essays and articles are in English. Haven't you ever felt an urge to write your fiction in English, especially when Indians writing in English are today gaining so much publicity and enormous financial benefit?
A. When I started writing, my contemporaries like Mulk Raj Anand and R.K. Narayan were struggling for a livelihood as those who were writing in Indian languages. Big advances running into millions of dollars were unthinkable at that time. Anyway, if I was asked to write in a language other than my mother tongue, I would refuse. The reason is that my stories and novels are very much a product of my emotional world, and the language of my inner world is Hindi.
[...]
अमरदीप के जरिये
Wednesday, October 26, 2005
साहित्यकार निर्मल वर्मा का निधन (BBCHindi.com)
"हिंदी भाषा में आधुनिक सार्वभौमिक चेतना को शब्द देने वाले प्रख्यात साहित्यकार निर्मल वर्मा नहीं रहे.
"फेफड़े की बीमारी से जूझने के बाद 76 वर्ष की अवस्था में दिल्ली में उनका निधन हो गया."
[...]
Monday, October 17, 2005
Opera Software Releases Browsers in Hindi and Punjabi: Only Current Browser Supporting Both Languages
"Opera Software today announced the availability of its browser in both Hindi and Punjabi. The browser is available for Windows and Linux. It can be downloaded from Opera's download page.
'The Web must become more accessible to people wherever they live and whatever language they speak,' said Jon S. von Tetzchner, CEO, Opera Software. 'Browser companies bear responsibility for allowing all people to access this amazing resource. Barriers such as language make the Internet less of a global resource than it could be. Opera is taking this step towards removing those barriers.' "
Friday, September 02, 2005
Sunday, August 07, 2005
बीबीसी की हिंदी
लोकप्रियता ये तो न करवाए। बीबीसी हिंदी वेबसाइट जो अपने आरंभिक दौर में अच्छे सम्पादन की मिसाल होती थी, अब कहाँ पहुँच गई है इसकी एक बानगी इस पन्ने पर देखी जा सकती है।
यह अकेला समाचार हिंदी प्रूफ़ की सामान्य अशुद्धियों की मिसाल है। पर समस्या इस पन्ने तक सीमित होती तो शायद मैं लिखता भी नहीं। पिछले एक लम्बे अर्से से ये लापरवाही बीबीसी हिंदी पर देख रहा हूँ। उन्हें सबूतों समेत एक पत्र भी लिख चुका हूँ पर कोई उत्तर नहीं - "पलट के देख तो लेता अगर जवाब न था"।
ब्लॉगरों और अन्य अनौपचारिक लेखकों द्वारा की गईं अशुद्धियाँ हालाँकि अखरती तो बहुत हैं पर बर्दाश्त की जा सकती हैं। आखिर वे लोग अपने लिए लिख रहे हैं और उन्हें इस बात की चिंता नहीं कि पढ़ने वाले उन्हें 'सीरियसली' लें। पर पेशेवर लेखकों का ऐसा करना हमेशा भारी तकलीफ़ का सबब होता है। और हिंदी के आजकल के पत्रकार ऐसी तकलीफ़ें देने में कोई तकल्लुफ़ नहीं करते।
बहरहाल, आइये हृदय-पीड़ा को कम करने के लिए इस मौके का सकारात्मक पहलू देखें और एक खेल खेलें। तो देखिये यह पन्ना और बताइये कि कुल कितनी वर्तनी या टंकण अशुद्धियाँ इस समाचार में मौजूद हैं। और कौन-कौन सी। हमारा खेल बीबीसी बाद में बिगाड़ न दे, इसलिये मैंने उनके पन्ने का एक तुरत-चित्र (स्क्रीनशॉट) भी ले लिया है।
Posted by v9y at 9:14 am
Wednesday, July 13, 2005
लाइव जर्नल हिन्दी में
लाइव जर्नल अब हिन्दी में उपलब्ध है। अभी पूरा अनुवाद नहीं हुआ है, लेकिन जितना हो चुका है, हिन्दी में उपलब्ध है।
Live Journal is now available in Hindi. Not yet fully translated, but the translations completed till now are available in production.
Sunday, June 19, 2005
आज जारी होंगे मुफ्त हिन्दी सॉफ्टवेयर टूल और फॉन्ट
(नवभारत टाइम्स)
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्षा सोनिया गांधी सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा विकसित कराए गए हिन्दी कंप्यूटर सॉफ्टवेयर टूल और फॉन्ट के ऑनलाइन मुफ्त वितरण कार्यक्रम का सोमवार को राजधानी में उद्घाटन करेंगी।
[...]
इस अवसर पर वह एक वेबसाइट का भी उद्घाटन करेंगी जिससे ये सॉफ्टवेयर और फॉन्ट कहीं से भी मुफ्त में डाउन लोड किए जा सकेंगे।
[...]
सोमवार को जारी सीडी और आन लाइन वितरण पैक में हिन्दी फॉन्ट की ड्राइवर सी डैक मॉड्यूलर इन्फोटेक, साइबर स्पेस मल्टी मीडिया, हिन्दी मल्टी फॉन्ट की बोर्ड इंजन, यूनीकोड पर चलने वाले ओपेन टाइप हिन्दी फॉन्ट की ड्राइवर, जेनटिक फॉन्ट, स्टोरेज कोड कन्वर्टर हिन्दी ब्राउजर, हिन्दी मसिंजर, हिन्दी ई-मेल, हिन्दी स्पेलचेक, हिन्दी-अंग्रेजी शब्द कोश, हिन्दी लैंग्वेज टेक्स्ट टू स्पीच सिस्टम, हिन्दी भाषा में वेबसाइट बनाने के सभी टूल शामिल हैं।
डाउनलोड पृष्ठ
Posted by v9y at 1:45 pm 1 comments
Saturday, June 11, 2005
एक और अखबार यूनिकोड के दरबार में
नवभारत टाइम्स वेब पर उपलब्ध यूनिकोडित हिंदी समाचार पत्रों में शामिल हो गया है। एक बड़ा अखबार होने के नाते, वेब पर हिंदी सामग्री प्रकाशन के मानकीकरण (जो कि यूनिकोड द्वारा ही संभव है) के लिए यह एक अच्छे उत्प्रेरक का काम कर सकता है।
Thursday, June 09, 2005
Hindi and other Indian languages readership growing fast
Dainik Jagran with a readership of 21.12 million has toppled Dainik Bhaskar to be the most read newspaper in the country, according to the National Readership Study (NRS) 2005. Dainik Bhaskar has a readership of 17.37 million, followed by Eenadu (11.34 million).
Hindustan, Amar Ujala, Daily Thanti, Lokmat, Rajasthan Patrika, Times of India and Anand Bazar Patrika were the others that figured in the Top 10 list.
Dainik Jagran had an urban readership of 10.46 million, followed by Dainik Bhaskar (9.70 million). Third in line was Times of India with a readership of 7.29 million. Amar Ujala, Daily Thanti, Lokmat, Gujarat Samachar, Anand Bazar Patrika, Hindustan and Eenadu were the others who joined the Top 10 list.
A noteworthy point here is that Dainik Jagran, which is ruling the roost at present, has benefited from the drastically changing environment in Uttar Pradesh, Bihar and Jharkhand where the literacy rate has grown the most when compared to the other parts of the country. Almost 2.7 million people in urban UP and 8.4 million people in rural UP can read and understand Hindi.
Thursday, May 19, 2005
अपना गिरेबान
जितनी जल्दी हमारे व्यापारियों को यह समझ में आ जाए, उतना ही उनका भला होगा. विडम्बना है कि गंगा उल्टी बही यानी इससे पहले कि हम अपने देशी उपभोक्ताओं की पुकार सुनते, हम बाकी दुनिया का सहायता-केन्द्र यानी कॉल सेंटर बनने लगे. पर अब हमें ऐसी चीज़ों की आदत सी हो गई है. विडम्बनाएँ हमारे लिए अपवाद कम नियम ज़्यादा बन गईं हैं. पर जो भी हो, आखिर गंगा को सीधा बहना ही था. देरी और प्रतीक्षा बस इसकी थी कि कब हमारे व्यापारी, उत्पादक और सेवाप्रदाता बाकी दुनिया के सेवा-स्तर तक पहुँचें और अपने उपभोक्ताओं की सुध लें. लगता है कि कुछ को सद्बुद्धि आई है. टाइम्स आफ़ इंडिया लिखता है:
Call centres in the city are on the lookout for candidates who have command over their native language, be it Gujarati, Marathi, Bengali, Kannada, Oriya, Malyalam, Telugu or Punjabi. Ranjeet P, director of one such outsourcing company in the city, says, the trend can be attributed to the fact that after catering to clients from abroad, call centres are spreading their web across the country to bolster domestic business. 'We do a lot of back office work for domestic companies. Many of these companies based in other parts of the country look for people who can speak their regional language because it helps in better understanding their requirements.' Umesh Patwardhan, assistant manager with another call centre, explains that people who have a command over a regional language, besides English and Hindi, can really rake a moolah. 'When you are in a business that depends so much on what and how you speak, it becomes important that you hire people who understand a language well. Local lingo, makes your job much easier,' Patwardhan goes on.
मेरे विचार से, सहायता सेवाओं और आन्तरिक काम-काज निष्पादन (back office processing) कम्पनियों का भविष्य और फ़ायदा अपने गिरेबान में झाँकने में निहित है. लम्बी अवधि में अपने देश के व्यापार से ही उनकी रोजी-रोटी चलनी है. दुनिया का बैक-ऑफ़िस बनना अल्पकालिक फ़ायदा है, जो कि कभी भी कोई दूसरा सस्ता और अधिक आकर्षक स्थान हमसे छीन सकता है (चीन, ताइवान, फ़िलिपीन पहले ही तैयारी कर रहे हैं). इन सेवा-प्रदाता कम्पनियों को अपने घर की ओर देखना चाहिए क्योंकि यहाँ न केवल अपार संभावनाएँ हैं बल्कि भविष्य के लिए एक विशेष सुरक्षा भी है. भारतीय भाषाओं की विविधता को देखते हुए मुझे नहीं लगता कि किसी और देश में यह क्षमता आसानी से उत्पन्न हो सकती है कि वह हमारा यानी भारत का बैक-ऑफ़िस बन सके. स्थानीय भाषाओं में प्रवीणता इस व्यापार की मुख्य शर्त है. और यही शर्त, शायद किसी भी और चीज़ की बजाय, घुटती (या घोटी जा रही) भारतीय भाषाओं के लिए सबसे अच्छी खबर है. क्योंकि, बिल क्लिंटन के चुनावी नारे के शब्दों में कहें तो - "it's the economy, stupid!"
Monday, April 18, 2005
Penguin launches books in Hindi (NDTV)
"Hoping to expand their publishing base, leading English-language publishers Penguin have launched a new and ambitious publishing programme in Hindi and other Indian languages.
"The Hindi list includes Hamara Hissa, an anthology of stories by well known writers like Kamleshwar, Rangeraghav, Mamta Kalia and Mridula Garg, translations of Khushwant Singh's bestselling Paradise and Other Stories, Anita Nair's Ladies Coupe and Namita Gokhale's Shakuntala.
[...]
""This is a very significant day for us. For the first time in our history we are publishing outside the English language. Bestsellers in the English language will now be available to more people," said John Makinson, CEO, Penguin Worldwide.
[...]
Also simultaneously launched in English and Hindi was writer Namita Gokhale's new novel, Shakuntala or Smriti Jaal set on the ghats of Kashi.
"Though I am basically an English writer, there are certain words certain feelings which you can express with one word in Hindi but you need several statements in English. There is always a feeling of incompleteness when one's books are only in English," said Namita Ghokhale."
Posted by v9y at 11:13 am 4 comments
Red Hat introduces Hindi software (i4donline)
"North Carolina-based Linux vendor Red Hat is focusing on localisation and e-Governance projects. The company has launched its new version of Linux v.4 in Hindi in the Indian city of Bhopal to enable the state government machinery interact with the people in the national language.
The new version will offer security, performance and manageability and will suit academic institutions, government departments and telecommunications. Apart from Hindi, the company has released its versions in the other Indian regional languages such as Punjabi, Tamil, Gujarati and Bengali."
Wednesday, March 09, 2005
चिट्ठा-पत्री
हिन्दी ब्लॉग जगत जोर-शोर से आगे बढ़ रहा है. इसी सन्दर्भ में एक नया, सामूहिक और सराहनीय प्रयास है - निरन्तर. निरन्तर एक मासिक "ब्लॉगज़ीन" यानी "चिट्ठा पत्रिका" है जिसका उद्घाटन अंक कुछ दिनों पहले ही जारी हुआ है. यह पत्रिका न केवल वेब की संगठन और सहयोग शक्ति का ही बल्कि हिन्दी चिट्ठाकारों की क्षमता का भी एक श्रेष्ठ उदाहरण है.
निरन्तर देखिये.