अमृता प्रीतम नहीं रहीं। एक सप्ताह के अन्तराल में भारतीय साहित्य के दो युगों का अन्त हो गया।
अँधेरे का कोई पार नहीं
मेले के शोर में भी खामोशी का आलम है
और तुम्हारी याद इस तरह
जैसे धूप का एक टुकड़ा...
- अमृता प्रीतम (१९१९-२००५)
Monday, October 31, 2005
Posted by v9y at 9:14 pm
2005-10-31T21:14:00-05:00
v9y
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