Wednesday, May 09, 2007

आज तक का सबसे बड़ा भाषाई सर्वेक्षण

भारतीय भाषाओं का पहला सर्वेक्षण 1898 में जॉर्ज ग्रियर्सन के नेतृत्व में शुरू हुआ था और 1927 में सम्पन्न हुआ. 29 साल लम्बे चले इस प्रयास में तत्कालीन भारत में बोली जाने वाली करीब 800 भाषाओं/बोलियों पर विस्तृत सर्वेक्षण किया गया था. भारतीय भाषाओं और बोलियों के बारे में हमारा ज्ञान काफ़ी हद तक उस सर्वेक्षण और उस पर बाद में किए गए ढेरों शोध प्रबंधों पर आधारित है.

ख़ुशी की बात है कि उस पहले सर्वेक्षण के लगभग 80 सालों बाद अगला और स्वतंत्र भारत का पहला भाषाई सर्वेक्षण इस महीने शुरू होने जा रहा है. यह न्यू लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ़ इंडिया (NLSI) एक महा-अभियान है जो करीब 10 सालों तक चलेगा. 280 करोड़ रुपयों के बजट वाली इस परियोजना में लगभग 100 विश्वविद्यालय, कई संस्थाएँ, और कम से कम 10000 भाषाविद और भाषा-विशेषज्ञ योगदान देंगे. निर्देशन का काम भारतीय भाषा संस्थान के जिम्मे है.

यह सर्वेक्षण पूरी दुनिया में आज तक का सबसे बड़ा राष्ट्रीय भाषाई सर्वेक्षण है. इस परियोजना में भारत में बोली जाने वाली हर भाषा व बोली का वर्णन होगा. इसके अलावा शब्दकोश, व्याकरण रूपरेखाएँ, दृष्य-श्रव्य मीडिया, और भाषाई नक्शे भी तैयार किए जाएँगे, जिन्हें बाद में वेब पर भी उपलब्ध कराया जाएगा.

ग्रियर्सन का पहला भारतीय भाषा सर्वेक्षण एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी. पर उसमें कई कमियाँ और ख़ामियाँ रह गईं थीं, जिनमें तत्कालीन मद्रास, हैदराबाद, और मैसूर राज्यों को शामिल नहीं किया जाना और सर्वेक्षकों का पर्याप्त शिक्षित नहीं होना (ख़ासकर भाषाविज्ञान के क्षेत्र में - इस काम में अधिकतर पोस्टमैनों और पटवारियों की मदद ली गई थी) मुख्य थीं. पर तमाम ख़ामियों के बावजूद यह हमारे लिए अपनी भाषाओं को जानने का एकमात्र और सबसे महत्वपूर्ण प्रामाणिक दस्तावेज़ है.

नया भारतीय भाषाई सर्वेक्षण उन कमियों से सीखकर आधुनिक भारत की बोलियों से हमें परिचित करवाएगा, ऐसा विश्वास है. आगे आने वाली कई पीढ़ियों के लिए तो सन्दर्भ ग्रन्थ होगा ही. इस महा-अभियान के लिए शुभकामनाएँ.

6 comments:

मिर्ची सेठ said...

विनय जी

बहुत बढ़िया खबर दी आपने। सुनकर मजा आया। इस सर्वेषण में हम लोग भी किसी तरह से योगदान दे सकते हैं क्या। जैसे कि कम्पयूटक सहयोग, डैटा कलैक्शन की तकनीकें, इंटरनेट का उपयोग कैसे किया जा सकता है। विभिन्न टीमें यदि अपना अपना ब्लॉग शुरु करें तो क्या मजा आए उनकी प्रगति देखने का। विकी का प्रयोग भी समझ में आता है।

पंकज

azdak said...

अच्‍छी खबर बताई.. शुक्रिया.

हरिराम said...

"हर चार कोस पर पानी बदल जाता है, बीस कोस पर बोली" ऐसी एक कहावत है न? हालांकि यह सर्वेक्षण बहुत उपयोगी होगा, फिर भी कुछ शंकाएँ मन में उपज रही हैं---

ग्रियर्सन के सर्वेक्षण के आधार पर अंग्रेज-सरकार ने भाषायी आधार पर भारत के टुकडे टुकड़े करके अनेक प्रान्त बना दिए थे, अब इस सर्वेक्षण के आधार पर क्या इरादा है? बोली के आधार पर जिलों में बाँटने का? 280 करोड़ रुपये भी क्या विश्वबैंक या आईएमएफ ब्याज पर दे रहा है?

सभी भाषाओं और बोलियों में समान तत्वों की तलाश करके एक-दृढ़-सूत्र में पिरोने की कहीं ज्यादा जरूरत है अब?

इसका आधा धन व श्रम भी यदि एक राष्ट्रभाषा (हिन्दी) को सही रीति लागू करने के लिए खर्च किया जाता तो राष्ट्रीय आय में लाखों करोड़ रुपये की बचत होती।

v9y said...

पंकज:
10 साल बड़ी लम्बी अवधि है और मुझे लगता है कि इस परियोजना के चलते चलते इससे सम्बन्धित ब्लॉग और सूचनात्मक वेबसाइटें देखने को मिलेंगी.

हरिराम जी:
मेरी राय में यह पूर्णतया अकादमिक मामला है और इसे राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. जहाँ तक भाषा के आधार पर राज्यों के बँटवारे की बात है क्या ये काम हमारी अपनी सरकार ने नहीं किया था? इस पर बहस की गुंजाइश हो सकती है पर भारत में प्रशासनिक क्षेत्रों (राज्यों) की सीमाएँ खींचने के लिए भाषा से बेहतर विकल्प कम दिखते हैं. तीसरी बात कि हमें हिंदी को राष्ट्रभाषा कहने से तब तक गुरेज़ करना चाहिए, जब तक यह आधिकारिक रूप से राष्ट्रभाषा मान नहीं ली जाती. इससे हमारी बाक़ी बात का वजन भी कम होता है. और मुझे नहीं लगता कि बाक़ी भारतीय भाषाओं की बेहतरी से हिंदी का कोई नुकसान है. जैसा किसी विद्वान ने कहा था, हिंदी का आंदोलन निज-भाषा का आन्दोलन है.

rachana said...

जानकारी और हरिराम जी के जवाब मे आपके वि़चार दोनो उपयोगी है.....धन्यवाद.

Anonymous said...

मेरे विचार से यह बहुत ही अच्छा निर्णय और प्रयत्न है | अलग अलग भाषाएं अलग अलग रीतियाँ यह सब तो हमारे भारत की शान रही है और हमें पूरी कोशिश करते रेहना चाहिए की भारत की अनेकता में एकता बनी रहे | अगर लोगों को एह मेहसूस होगा की उनकी भाषा को इज़्ज़त दी जा रही है तो वो दूसरी भाषाओं को भी मान देंगे | ऐसी चीज़ों से भारतीयों की भारत की भाषाओं के बारे में भी जानकारी बढ़ेगी | जागरूकता बढ़ेगी | जिसकी आज बहुत ज़रूरत है | इतना ही नहीं हमें हिंदी के साथ साथ बाक़ी भाषाओं के कम्यूटर पर प्रयोग के तरीक़े निकालने चाहिए | ऐसी चीज़ें बनाने वालों को पुरस्कार देना चाचिए | मेरी जानकारी में quillpad.in में हिंदी के अलावा कई भाषाओं को आसानी से कम्यूटर पर लिक्खा जा सकता है |

मूँगा लाल