सिम्रेदो जावा यूनिकोड सम्पादन तन्त्र | Simredo Java Unicode Editor
Friday, January 07, 2005
Posted by आलोक at 6:33 am 2 comments
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जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास /
ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा
-केदारनाथ सिंह
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