Prajant's Xanga Site
For those not in the know, that says "Hindi!"
Thursday, October 23, 2003
2003-10-23T10:06:00-04:00
आलोक
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास /
ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा
-केदारनाथ सिंह
हिंदी चर्चासमूह के सदस्य बनें |