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Wednesday, March 05, 2008

प्रश्नोत्तरंग

जब तक इंटरनेट लोगों के घर तक, उनकी अपनी भाषा में, आसान रूप में नहीं पहुँचता (कभी पहुँचेगा भी?), तब तक के लिए एक उपाय - क्वेश्चन बॉक्स.

परिकल्पना बड़ी सीधी है - लोग इसके जरिये एक ऑपरेटर को फ़ोन कर अपने सवाल पूछते हैं, ऑपरेटर इंटरनेट से उनके जवाब ढूँढ़ कर उन्हें वापस बताता है. ये बक्से प्रयोग के तौर पर अभी दिल्ली के पास, नोयडा के बाहर, दो कस्बों में लगाए गए हैं.

कल कोरी डॉक्टरो ने बोइंग बोइंग पर इसका ज़िक्र किया है. मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि बड़े पैमाने पर इसका काम कर पाना मुश्किल होगा. यह तरीका शहरों या बड़े कस्बों के लिए मुझे बहुत कुशल नहीं लग रहा. आप क्या सोचते हैं?

Thursday, October 11, 2007

उदाहरण.परीक्षा

ताज़ा अपडेट (15 अक्टूबर) - http://उदाहरण.परीक्षा अब परीक्षण के लिए चालू है. अगर यह कड़ी काम नहीं करती तो यहाँ क्लिक करें (और बेहतर होगा कि अपना ब्राउजर बदल लें या नवीनीकृत कर लें). परीक्षण का खुलासा करता हुआ एक विडियो भी है.

ख़बर है कि नए बहुलिपि डोमेन नामों के परीक्षण के लिए हिंदी डोमेन होगा - उदाहरण.परीक्षा. इन परीक्षण डोमेनों को 9 तारीख को रूट सर्वरों पर जोड़ दिया गया. परीक्षण विकी की कड़ियाँ आइकैन की वेबसाइट पर 15 अक्टूबर को प्रकाशित की जाएँगी.



लगे हाथों एक और ख़बर - आइकैन की 31वीं अंतरराष्ट्रीय बैठक अगले साल 10-15 फरवरी को नई दिल्ली में होगी.

Friday, October 05, 2007

हिंदी और तमिळ में डोमेन नाम

परसों विंट के मुँह से सुना और आज ख़बर अख़बार में थी. अनुनाद ने भी आज इसका ज़िक्र किया है.

अगले साल के अंत तक पूरे के पूरे डोमेन नाम (टीएलडी यानि शीर्ष-स्तर डोमेन नाम समेत) लैटिन के अलावा 11 अन्य लिपियों में प्रयोग किए जा सकेंगे. भारतीय लिपियों में हिंदी (देवनागरी) और तमिळ को इस शुरुआती दौर के लिए चुना गया है.

परीक्षण इसी 15 अक्टूबर से शुरू हो जाएगा, जब आइकैन व्यक्तियों और व्यापारों को इसे जाँचने के तरीके मुहैया कराएगा. अभी हालाँकि इन नामों के पंजीकरण तो शुरू नहीं होंगे, पर आपसी संवादों, ई-मेल, वेब कड़ियों में इन्हें इस्तेमाल किया जा सकेगा. आइकैन के अनुसार एक तरह से पूरी दुनिया को इस प्रणाली को तोड़ने के लिए आमंत्रित किया जाएगा. आप भी तैयार रहिएगा :).

नागरी के मामले में कुछ बातें हैं जिन्हें परखने के लिए मैं उत्सुक रहूँगा. मसलन भिन्न कूटांको वाले पर एक से दिखने वाले हिंदी शब्दों को यह सिस्टम कैसे सँभालेगा. यह जानना भी दिलचस्प होगा कि हिंदी में .com या .org आदि डोमेनों को कैसे लिखा जाएगा.

क़दम स्वागत योग्य है, भले ही ज़रा देर से उठा है. उस दिन का इंतज़ार रहेगा जब सिर्फ़ नागरी जानने वाला एक व्यक्ति "गूगल.कं.भारत", "वेब.बीबीसीहिंदी.कॉम" या "भारत.सरकार" जैसा कुछ टाइप कर भी इन गंतव्यों पर पहुँच पाएगा.

Thursday, October 04, 2007

इंटरनेट के जन्मदाताओं के साथ एक शाम

इंटरनेट के आविष्कार की कहानी बॉब कॉन और विंट सर्फ़ से सुनने को मिले, इसे मैं बतौर इंटरनेटजीवी एक दुर्लभ सुख कहूँगा. ये सुख कुछ-कुछ ऐसा ही है जैसा शायद कोई टेलीकॉम इंजीनियर खुद ग्राहम बेल से टेलीफ़ोन की निर्माणगाथा या कोई संस्कृतज्ञ खुद पाणिनी से संस्कृत व्याकरण की रचना के बारे में सुन कर अनुभव करेगा.

जो न जानते हों उनके लिए बता दूँ कि ये दोनों "इंटरनेट के जनक" माने जाते हैं. दोनों ने मिलकर नेट के मूलभूत प्रॉटोकॉल टीसीपी/आइपी का आविष्कार किया था. उसके बिना आज का जीवन कैसा होता इस सोच में जाना तो काफ़ी समय माँगता है, हाँ इतना तो कम से कम कह ही सकता हूँ कि आप मेरा ये लिखा न पढ़ रहे होते.

कल बॉब और विंट शहर (वाशिंगटन, डीसी) में थे. अमेरिका के नेशनल आर्काइव्स (राष्ट्रीय अभिलेखागार) में आयोजित एक चर्चा में दोनों ने करीब डेढ़ घंटे तक खुलकर बात की. हालाँकि चर्चा का मुख्य विषय "इंटरनेट गवर्नेंस की बहस" था, दोनों इंटरनेट के शुरुआती दौर (सत्तर के दशक) के किस्सों से लेकर नेट के भविष्य पर अपने विचारों समेत कई मुद्दों पर बोले. नेशनल आर्काइव्स के छोटे से मैकगॉवन थियेटर में करीब 200 लोग थे जिनमें अमेरिकी सरकार के नुमाइंदे और डीसी इंटरनेट सोसाइटी के सदस्य मुख्य थे. कार्यक्रम के मध्यस्थ थे आर्काइव्स फ़ाउंडेशन के चेयरमैन टॉम व्हीलर.

इस सवाल के जवाब में कि क्या हम आज इंटरनेट को कुशलता से (एफ़िसियंटली) प्रयोग कर रहे हैं, विंट का कहना था नहीं. कई ऐसे परिदृष्य हैं जहाँ ऐसा नहीं हो रहा है. मसलन डाउनलोड और अपलोड बैंडविड्थ में अंतर. उनका कहना था कि पहले ये ठीक था क्योंकि शुरुआती दौर में निर्माता/प्रकाशक कम थे और उपभोक्ता ज़्यादा. पर अब ब्लॉगों और यू-ट्यूब के ज़माने में हर कोई निर्माता है. इस अंतर को समझ कर हमें बदलाव करने होंगे.

बॉब का कहना था कि मैं इस प्रश्न को बहुत महत्वपूर्ण नहीं मानता. जबकि बैंडविड्थ लगभग असीमित है, कुशलता या एफ़िसियंसी हमारी प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए. हमारी प्राथमिकता फ़ंक्शनॅलिटी होनी चाहिये.

बॉब का जवाब मुझे एक और संदर्भ में दिलचस्प लगा. मेरे ख़याल से उनकी ये बात हिंदी के लिए यूनिकोड मानक के उपयोग (ख़ासकर मोबिल यंत्रों पर) के पक्ष में जाती है. यूनिकोड, एस्की जैसे सरल कूटकरणों के मुकाबले ज़्यादा संसाधन (मुख्यतः बैंडविड्थ) माँगता है, पर हिंदी और अन्य ग़ैर-लैटिन लिपियों के लिए अब सवाल संसाधनों का नहीं, सुविधा का होना चाहिये.

निकट भविष्य के बारे में विंट का कहना था कि आइपी6 को लागू करना पहली प्राथमिकता है क्योंकि 2010 तक आइपी4 के पते ख़त्म हो जाएँगे. इसके अलावा उन्होंने बताया कि 2008 में अन्य लिपियों में डोमेन नाम भी पूरी तरह काम करना शुरू कर देंगे.

बॉब ने डारपा (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की संस्था, जहाँ इंटरनेट का आविष्कार हुआ) छोड़ने के बाद एक नॉन-प्रॉफ़िट संस्था सीएनआरआइ शुरू की और अब उसके अध्यक्ष व सीईओ हैं. विंट इन दिनों गूगल के उपाध्यक्ष और चीफ़ इंटरनेट इवैंजलिस्ट (प्रचारक) हैं. इसके अलावा 2000 के बाद से वे आइकैन बोर्ड के चेयरमैन भी हैं.

सेलफ़ोन से कुछ तस्वीरें ली थीं. बहुत अच्छी तो नहीं हैं पर पोस्ट करूँगा ये रहीं.