जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास /
ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा
-केदारनाथ सिंह
नमस्ते! आपके ब्लॉग पैर मुझे हिंदी और इंटेरनेट से जुड़े हुए काफ़ी सारी कड़ियान मिलीं | मुझे इनको उपयोग मैं लेने मैं काफ़ी परेशानी आती थी | लेकिन आज कल मैं एक नयी सेवा का प्रयोग कर रहा हूँ - जिसका नाम है quillpad | इससे मुझे english से हिंदी मैं लिखने मैं बड़ी आसानी होती है | आप भी देखें की एह आपके काम आ सकता है की नहीं | http://quillpad.in/hindi/ | धन्यवाद |
गाँव की धारा अब शहर की ओर जो उन्मुख है…।
ReplyDeleteनमस्ते! आपके ब्लॉग पैर मुझे हिंदी और इंटेरनेट से जुड़े हुए काफ़ी सारी कड़ियान मिलीं | मुझे इनको उपयोग मैं लेने मैं काफ़ी परेशानी आती थी | लेकिन आज कल मैं एक नयी सेवा का प्रयोग कर रहा हूँ - जिसका नाम है quillpad | इससे मुझे english से हिंदी मैं लिखने मैं बड़ी आसानी होती है | आप भी देखें की एह आपके काम आ सकता है की नहीं | http://quillpad.in/hindi/ | धन्यवाद |
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