जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास / ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा -केदारनाथ सिंह
बड़ा खूबसूरत फूल है भाई!
मैं तो अप्रैल फूल ही बनने के लिये यहां आया। यह तो सच निकला। इसी में अप्रैल फूल बन गया।
चलिये कम से कम फूल ने फ़ूल नहीं बनाया :)
हे हे हे ! ... क्या फूल बनाया :)
badhiyan hai
Hello mate greaat blog post
बड़ा खूबसूरत फूल है भाई!
ReplyDeleteमैं तो अप्रैल फूल ही बनने के लिये यहां आया। यह तो सच निकला। इसी में अप्रैल फूल बन गया।
ReplyDeleteचलिये कम से कम फूल ने फ़ूल नहीं बनाया :)
ReplyDeleteहे हे हे ! ... क्या फूल बनाया :)
ReplyDeletebadhiyan hai
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