पर मुद्दे पर आऊँ उससे पहले एक दो बातें और कहना चाहूँगा.
मैं निंदक नहीं हूँ. निंदक और आलोचक में भी फ़र्क होता है. और मैं तो आलोचक भी नहीं. मुझे तो ज़्यादा से ज़्यादा प्रूफ़रीडर कह सकते हैं. या थोड़ा अधिक सम्माननीय होना चाहें तो उत्प्रेरक (कुछ सीखने का) कह लें. पर निंदक? न.
मैं "व्याकरणाचार्य" भी नहीं हूँ :). अनूप जी की तो मौज लेने की आदत है. पर जो उनकी इस आदत से नावाक़िफ़ हों उनके लिए स्पष्ट कर देना ज़रूरी है. मैं भी आपमें से अधिकतर की ही तरह एक सामान्य हिंदी भाषी हूँ. न तो मैं कोई भाषाविद हूँ न भाषाविज्ञ. भाषा में रुचि रखने वाला या शिक्षार्थी हूँ. यह हिंदी का दुर्भाग्य होगा अगर किसी व्यक्ति को सिर्फ़ इस बिना पर कि वह ठीक हिंदी लिखता है, व्याकरणाचार्य या भाषाविद समझा जाए. ठीक हिंदी लिखना हर हिंदी लेखक की बुनियाद होनी चाहिए, उसकी विशेषता नहीं.
ख़ैर, अब मुद्दे पर आता हूँ. सार्वजनिक रूप से ग़लतियाँ बताना कुछ को खला है (हाँ, सार्वजनिक रूप से ग़लतियाँ *करने* में वे कोई बुराई नहीं मानते :)). खुली टिप्पणियों में सुधारों का ज़िक्र करने के पीछे मंशा यह थी कि चिट्ठा लिखनेवाले के अलावा उसे पढ़नेवाले भी फ़ायदा उठा सकेंगे. पर न तो मैं चाहता हूँ कि किसी को बुरा लगे, न ही किसी की कमियाँ दिखाना मेरा ध्येय है. दुष्यंत को उद्धृत करूँ तो:
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
पर घबराइये मत (या अगर आप दूसरी तरफ़ हैं तो ख़ुश मत होइये :)), इतनी जल्दी मैं हार नहीं मान रहा. बस ये कुछ बदलाव तय किये हैं मैंने इस अभियान में.
॰ अब मैं सार्वजनिक रूप से उन टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं करूँगा. अधिकतर चिट्ठों में 'टिप्पणी मध्यस्थन' सुविधा है. ऐसे चिट्ठेवालों से अनुरोध है कि मेरी टिप्पणियों में सुझाए सुधार देखें, हो सके तो प्रविष्टि की ग़लतियाँ सुधार लें और फिर मेरी पोस्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दें. यानी उसे प्रकाशित मत करें.
॰ जिन चिट्ठों पर ऐसी सुविधा नहीं है वहाँ मैं टिप्पणियाँ नहीं छोड़ूँगा.
॰ कोशिश करूँगा कि दिवाली तक यह सफ़ाई अभियान खींच जाऊँ.
॰ कोशिश करूँगा कि दिन में कम से कम एक जगह तो झाड़ू लगा ही दूँ.
॰ कोशिश रहेगी कि जिसने रुचि दिखाई हो, पहले (या शायद सिर्फ़) वहीं जाऊँ.
आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. इससे मुझे यह भी पता चलेगा कि आपकी इस सुधार में रुचि है और आपको कोई आपत्ति नहीं है. बस, महज शिष्टाचारवश ऐसा मत करें. अब ये कहाँ का शिष्टाचार कि किसी को अपने घर के जाले निकालने बुलाओ और जब वह निकाले तो कहो कि भई सचमुच थोड़े ही बुलाया था :).
भाईसा' मेरे चिठ्ठे पे कोई कोई मध्यस्थन नही है पर टिप्पणी करने में शंका ना करें। अपन तो स्वाभाव से ही बेशरम है| मैं समझता हूँ कि किसी की प्रविष्टी पढ़कर टिप्पणी करने में भी आपका समय लगता है जिसका आभारी हूँ। हालाँकि मैं यह नही मानता कि गलत अंग्रेजी या हिन्दी वाले के चिठ्ठे पर एक कदम भी ना बढ़ाया जाये जैसा कि आपने इस अभियान के उद्देश्य में लिखा था।
ReplyDeleteअरे विनय भाई, हम बुरा माने कि नहीं, यह तो पता नही (हमें तो नहीं लगता) मगर आपने जरुर समझा कि हम बुरा मान गये और यह भी तय है कि आप तो कम से कम बुरा मान ही गये और भावावेश मे दो पालियां भी बना गये:
ReplyDelete"पर घबराइये मत (या अगर आप दूसरी तरफ़ हैं तो ख़ुश मत होइये :)), ...."
अरे भाई, यह सही है कि आप फ़ुरसतिया जी से जमाने से वाकिफ है और उनकी आदत भी जानते हैं कि वो मौज मस्ती लेते रहते हैं मगर आपने ये कैसे मान लिया कि हम ऎसा नहीं कर सकते. अरे यार, यह मौज मस्ती लेने का अधिकार तो हमें भी है. रही बात कि मैने लिखा क्यूँ:
तो मै जब भी लिखता हूँ तो अपने आपको समीर लाल मान कर नहीं, बस यह सोच कर कि इस बात का सबसे खराब रुप क्या हो सकता और कोई कहां तक जा कर सोच सकता है, वो अंग्रेजी मे कहते हैं न Worst Case Senario... बस उसी को ले कूछ मौज मस्ती हुई और आप तो हमारी पड़ोसन की तरह बुरा मान गये( वैसे अब मै पड़ोसन से बिल्कुल मजाक नहीं करता, जान गया हूँ न)...आप भी अगर बुरा माने रहे, तो आपसे भी मजाक बंद, बस बहुत सिरियसनेस का चस्पा चेहरे पर चिपका कर बात करेंगे, मगर करेंगे जरुर.
"अब ये कहाँ का शिष्टाचार कि किसी को अपने घर के जाले निकालने बुलाओ और जब वह निकाले तो कहो कि भई सचमुच थोड़े ही बुलाया था :)."
भाई मेरे, मेरा वाकया क्रं. २ फिर से पढ़ो न, प्लीज्ज्ज..!! " मगर अपने ब्लाग पर बुलाते वक्त मुझे इस वाकये का ख्याल भी नहीं था, वो तो लिखते वक्त बस उचक कर ख्याल आ गया जो कि सबसे ज्यादा मजा दे.
मैने तो यह भी लिखा था:
हम तो गड्डों से बच कर उछले
निकल गये वो, जो पीकर निकले.
कहीं टिप्पणी पोस्ट से बड़ी न हो जाये, तो बस, अब बस करता हूँ...बुरा न मानो मेरे भाई, इतने भी बुरे नहीं हैं हम. चाहे तो जो पहले हमें झेल चुके हैं उनसे पूछ कर देख लो.
अब थोड़ा मुस्करायें, फिर मेरे चिट्ठे पर आयें और फिर गोले बनायें, चाहें तो ईमेल से और चाहें तो खुले आम...हंस दे, भाई.
-समीर लाल उर्फ उड़न तश्तरी
समीर लाल जी,
ReplyDeleteफिर दिखा दिया न आपने बड़प्पन। और नहीं साहब, मैंने बुरा नहीं माना था। अपनी बात कहनी थी। आपने मौका दिया तो हमने आपके कंधे पर रखकर बंदूक चला दी।
रही बात पालियों वाली बात की, तो एक 'स्माइली' वहाँ यही सोच के छोड़ा था कि काम कर जाएगा, पर हमारे दाँत आपको दिखे नहीं। खैर, लीजिए अब देख लीजिये। :D
भाई हमारे चिट्ठे को आप अपना चिट्ठा समझ आते रहे और मिन-मेख निकालते रहे. अगर आपने हमें थोड़ा भी सुधार दिया तो हम "अशुद्ध लिखने वाला" जैसे तिरस्कार से बचे रहेंगे.
ReplyDeleteआपका प्रयास सराहनिय हैं. मैं प्रशंसा करता हूँ.
समिरलालजी तथा फुरसतियाजी जैसे चिट्ठाकारों से ही हमारा चिट्ठाजगत जिवंत हैं, इसमे थोड़ा हास्य-विनोद हैं. थोड़ी खिंचाई भी हैं.
विनय जी, कृपया कम से कम एक बार जरूर आप मेरे चिट्ठे पर आयें.आप सार्वजनिक रूप से जितनी चाहे(मतलब जितनी सारी भी हों) गलतीयाँ बताएँ.मैं शुद्ध हिन्दी लिखना चाहती हूँ.
ReplyDeleteविनय भाई
ReplyDeleteएक सुझाव मेरा भी है। यह किसी के बुरा मानने या और किसी वजह से नही है। मैं सोच रहा था कि मीन मेख अभियान तो अच्छा है पर आप को अलग अलग चिठ्ठो पर टिप्पणी छोड़नी पड़ती हैं, अब मान लीजिये मैं चँद्रबिंदु वाली गलती करता हूँ कोई और दुसरी गलती करता है, अगर यह सब एक जगह चले तो कैसा रहें। कहने का मतलब यह कि क्यो न चिठ्ठा चर्चा की तरह व्याकरण चर्चा जैसा चिठ्ठा हो। आप साथ में और लोग भी हाथ बँटा सकते है, नियमित रूप से व्याकरण की गलतियाँ इंगित कर सकते हैं उस चिठ्ठे में। यह चिठ्ठा चर्चा की एक श्रेणी बन सकता है जब चिठ्ठा चर्चा नये नारद पर पहुँचे तो।
अब आप चाहे तो उस चर्चा में गलती के साथ चिठ्ठे का उल्लेख करें या न करें यह थोड़ा आसान हो जायेगा। बाकी सब दूसरे की गलतियों से भी लाभ उठायेंगे।
विनय जी आपका ये प्रयास सराहनीय है । आप जरूर हमारी त्रुटियों को सार्वजनिक रूप से चिन्हित करें। हमारे गुरु जी कहा करते थे कि भाषा भले उच्च कोटि की हो पर अगर उनमें तुम छोटी मोटी गलतियाँ करोगे तो पढ़ने वाले का सारा रस जाता रहेगा ।
ReplyDeleteसंजय, रचना, मनीष,
ReplyDeleteशुक्रिया.
अतुल,
सुझाव अच्छा है. ऐसा कुछ होता है तो मेरा सहयोग और समर्थन हाज़िर होगा.
विनय जी,
ReplyDeleteमेरी उडनतश्तरी पर की टिप्पणी को टिप्पणी का कुछ ज्यादा ही महत्व देकर विवादास्पद बना दिया गया। मैने समीर जी की बात के परिपेक्ष मे अपनी बात कही थी। जितना बडा समीर जी का लेख था उससे कही भी छोटी मेरी टिप्पणी नही थी। मै चाहता तो इसे अपने ब्लाग पर देकर अपने लेखों की संख्या मे वृद्धि कर सकता था पर मैने ऐसा करना कद्दापि उचित नही समझा था। क्या टिप्पणी पर भी इतनी चर्चा करना उचित है?
मुझे खुशी तो इस बात की है दो-तीन माह से लिख रहा हूं। आज तक मेरी किसी रचना तथा कविता अन्य सामग्री की चर्चा ''चिठ्ठा चर्चा'' पर चर्चा कभी नही की गयी एक अपवाद हिगिंस वाले लेख को छोडकर खैर मेरी टिप्पणी को तो लायक समझा गया।
मैने तो केवल समीर जी की बातो का समर्थन किया था जिस प्रकार लक्ष्मी जी ने किया था। अगर आपको लगता है कि समीर जी ने हास्य के रूप मे यह कहा है तो मेरी टिप्पणी को भी हास्य के रूप लिया जाना चाहिये था न विवाद के रूप मे क्योकि मैने लेख का अक्षरसह सर्मथन किया था। यानि प्रत्येक बातो का सर्मथन, हास्य के रूप हो तो हास्य तथा विरोध हो तो विरोध के रूप मे, जैसा पढने वाले को लगे।
मैने कभी अपने व्लाग पर नही कहा कि व्याकरण की गलतियों का उल्लेख नही किया जाना चाहिये मैने भी सदा ऐसा टिप्पणी का स्वागत किया है। मेरे कबिता ब्लाग पर मात्राओं के सम्बन्ध मे टिप्पणी है मैने कभी विरोध नही किया। आप देख सकते है-
http://pram-raj.blogspot.com/2006/07/blog-post.html#comments
http://pram-raj.blogspot.com/2006/08/blog-post_21.html#comments
अगर आप भी मेरे व्लाग पर आये तो मुझे भी हार्दिक खुशी ही होगी। मेरी अपत्ति तो केवल अशिष्ट टिप्पणी से ही थी, आप मेरी टिप्पणी को कद्दापि अपने परिपेक्ष मे न लें।
प्रमेन्द्र प्रताप सिंह
this is very useful content kolkata ff
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