हिन्दी

जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास / ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा
-केदारनाथ सिंह

Friday, July 16, 2004

हिंदी की महत्ता के सम्बन्ध में विद्वानों के मत
(नागरीप्रचारिणी सभा से)
v9y at 11:31 am

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