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जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास / ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा
-केदारनाथ सिंह

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Monday, June 18, 2007

स्ट्राइसैंड प्रभाव

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[ नारद विवाद पर बहुत बातें कही जा चुकी हैं. पर वक्त की कमी की वजह से इतनी अलग-अलग जगहों पर हो रही बहस को भली तरह समझ पाना मेरे लिए मुश्किल ...
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