हिन्दी

जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास / ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा
-केदारनाथ सिंह

Showing posts with label पुस्तकचर्चा. Show all posts
Showing posts with label पुस्तकचर्चा. Show all posts
Friday, April 27, 2007

खड़ीबोली

›
अभय ने आज सुप्रसिद्ध हिंदी भाषाविज्ञानी किशोरीदास वाजपेयी की 'हिंदी शब्दानुशासन' से कुछ रोचक अंश प्रस्तुत किए हैं. हिंदी भाषाविज्...
6 comments:
›
Home
View web version
v9y
View my complete profile
Powered by Blogger.