जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास /
ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा
-केदारनाथ सिंह
Monday, June 11, 2007
बिल्लियाँ सिर्फ़ हिंदी समझती हैं
नहीं मानते? अमेरिका के डेव पेटन से पूछिए. वरना ख़ुद ही किसी बिल्ली से बात करके देख लीजिए. अगर बात हो तो मेरा नमस्ते कहिएगा.
अरे ये तो दोस्ती की भाषा है केवल हिंदी ही नहीं है। यह अलग बात है कि आप कह लो कि हिंदी दोस्ती की भाषा है!
ReplyDeleteआपका नमस्ते कहा था उससे..याद करके बेचारी की आँख नम हो आई. कह रही थी कि आजकल आप ज्यादा लिख नहीं रहे, हिन्दी समझ गई. उसने भी नमस्ते कहा है. :)
ReplyDeleteक्या महाराज, ये क्या इधर-उधर टहल रहे हैं..!.. काम की चीज़ निकालिए काम की!.. वैसे प्रभु जोशी वाली खोज दुरुस्त थी..
ReplyDeleteसन्दर्भित संस्मरण में 'किरण' ने यदि बिल्लियों से पंजाबी में बात करना शुरू किया होता तो वे पंजाबी ही समझतीं। पशु प्रेम की भाषा समझते हैं।
ReplyDeleteहा हा मजेदार लिंक लाए। बिल्ली जी से मिलें तो हमारी भी नमस्ते कह देना।
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