Monday, August 28, 2006

अनुवादकों के लिए कुछ 17-18 सुझाव

1. शुरू करने से पहले पूरा मूल-पाठ एक बार पढ़ लें. कथन के सार और शैली का एक अंदाज़ा ले लें. अपने अनुवाद में उसी कथ्य-शैली (मज़ाकिया, औपचारिक, तकनीकी, आदि) का प्रयोग करें.

2. विषय को जानें. शोध करें. अगर विषय-वस्तु पर आपकी पकड़ गहरी नहीं तो आपको मूल पाठ को ठीक-ठीक समझकर अनुवाद में स्पष्टतः व्यक्त करने में कठिनाई होगी.

3. अपने मुख्य पाठकवर्ग को पहचानें और उनके लिए अनुवाद करें. यदि आप किसी तकनीकी लेख का आम जनता के लिए अनुवाद कर रहे हैं तो कोशिश करें कि गूढ़ तकनीकी शब्दों (जार्गन) की बजाय धारणा (कांसेप्ट) को समझाने वाले वाक्य हों. अनुवाद को इस कसौटी पर उतारें कि क्या आपके पिता या माँ इसे समझ पाएँगे.

4. भाषा की बारीकियाँ, उसके मुहावरे बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. ज़रूरी है कि संबंधित भाषाओं के बोलचाल और लेखन दोनों रूपों पर आपकी अच्छी पकड़ हो, पर खासकर लक्षित भाषा (हिंदी) पर.

5. भाषा सहज रखें - यह सबसे ज़रूरी नियम है. लेख में रवानगी होनी चाहिए. अनुवाद को उच्चारित करके पढ़ें और देखें कि ठीक लग रहा है या नहीं.

6. व्याकरण को सामान्य मानक बोलचाल वाली भाषा के करीब रखें. जब तक कि विषय की माँग न हो, क्षेत्रीय या आंचलिक लहजों/रूपों से परहेज करें. स्लैंग या भ्रष्ट रूप का प्रयोग मत करें.

7. नामों या नाम-रूपी संज्ञाओं को अनुवादित न करें. उदाहरण के लिए, 'इंटरनेट' एक नाम है, इसके अनुवाद की आवश्यकता नहीं. जबकि 'इंट्रानेट' एक तकनीकी विषय है, इसका अनुवाद करें.

8. विचारों, विषयों, धारणाओं को व्यक्त करने वाले पदों का अनुवाद करें, पर शब्दशः नहीं. इनके लिए ऐसे शब्दों या शब्दयुग्मों का प्रयोग करें जो पाठक को संबंधित विषय सबसे बढ़िया तरीके से समझा पाएँ. यदि आप आम रोजमर्रा जीवन से कोई समतुल्य विचार ढूँढ़ पाएँ, तो उसके लिए प्रयुक्त मौजूदा शब्द सबसे बेहतर काम करेगा.

9. पहले तद्भव. तकनीकी संकल्पनात्मक पदों के लिए हिंदी में नए शब्द ढूँढ़ते समय इस क्रम में देखें:
1) तद्भव/देशज
2) तत्सम
3) हिंदी में लोकप्रिय अन्य शब्द (विदेशी समेत)

अगर इनमें कोई उपयुक्त शब्द न ढूँढ़ पाएँ तो मूल शब्द को ही रख लें.

10. मूल विदेशी शब्द को लेते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसके उच्चारण में यथोचित बदलाव हो ताकि
1) वह आम जनता द्वारा बोलने में आसान हो
2) उसे मौजूदा उपलब्ध अक्षरों/चिह्नों की मदद से लिखा जा सके

नागरी, अपने वर्तमान संशोधित रूप में, हिंदी ध्वनियों की आवश्यकता पूरी करने में समर्थ है. विदेशी शब्द उधार लेते समय उन्हें नागरी में आम तौर पर प्रयुक्त अक्षरों/चिह्नों के प्रयोग से ही लिखें. अनजान ध्वनियों के लिए उनके पास के उच्चारण वाले अक्षर प्रयोग करें. पर नए अक्षर या चिह्न मत गढ़ें.

11. हास्यास्पद या अटपटे पद न गढ़ें. चल नहीं पाएँगे. 'लौहपथगामिनी' को ले लीजिए. हालाँकि 'ट्रेन' का यह अनुवाद तकनीकी रूप से ग़लत नहीं है, पर अपनी अनावश्यक जटिलता से महज हँसी की चीज़ बनकर रह गया है. दूसरी तरफ़, 'रेलगाड़ी' सफल भी है और सही भी.

12. दुनिया भर में होने वाली नई खोजों के नाम सामान्यतया उनके खोजकर्ता रखते हैं और वे स्वाभाविक रूप से उनकी भाषा में होते हैं. इनका अनुवाद न करें. उच्चारण को हिन्दी की प्रकृति के अनुकूल बनाने के बाद इन्हें ज्यों का त्यों ले लें.

13. नए शब्द गढ़ने का मोह त्यागें. अगर आप पढ़ते-लिखते रहें और दुनिया से जुड़े रहें तो पाएँगे कि आपको ऐसा करने की ज़रूरत बहुत कम पड़ेगी. यदि किसी ने पहले ही किसी पद के लिए ठीक-ठाक हिन्दी अनुवाद प्रस्तावित कर दिया है, तो उसे ही काम में लें.

14. इस बात को स्वीकारें कि सूचना तकनीक की शब्दावली मुख्यतः अमेरिकी अँगरेज़ी में है, उसी तरह जिस तरह योग से संबंधित शब्दावली संस्कृत में. कई ऐसे तकनीकी पद हैं जिन्हें हिंदी प्रयोक्ता उनके मूल अँगरेज़ी रूप में शायद बेहतर समझ और याद रख पाएँगे. अगर ऐसा लगे तो उन पदों को ज्यों का त्यों ले लें.

15. वर्तनी या हिज्जे ठीक रखें. अशुद्ध वर्तनी न केवल भ्रम पैदा कर सकती है, बल्कि आपके अनुवाद की विश्वसनीयता भी ख़त्म कर देती है.

16. जब शंका हो तो शब्दकोषों की मदद लेने में कोई संकोच न करें. पर केवल अच्छे, प्रतिष्ठित शब्दकोषों की.

17. याद रखें कि अनुवादक (और लेखक के भी) के तौर पर आपकी मुख्य जिम्मेदारी अपने पाठक तक ठीक-ठीक संप्रेषण की है. अपनी विचारधारा को इस काम में आड़े न आने दें. पर साथ ही, आलस्यवश या अज्ञानवश अँगरेज़ी शब्दों को अनुवादित किए बिना छोड़ कर अपने पाठक के प्रति असम्मान भी मत जाहिर करें. हँगरेज़ी या हिंगलिश मत लिखें.

18. और यह भी याद रखें कि समय और अनुभव के साथ ही अनुवाद में निपुणता आती है. इसलिए खूब अनुवाद करें.

12 comments:

  1. विनय, काफी विस्तार से अच्छा समझाया है, क्रमांक १४ की वजह से ही मैने वो पोस्ट शुरू की थी क्योंकि मैंने कई जगह पर महसूस किया कि लोग सूचना तकनीक से जुड‌े शब्दों का भी अनुवाद कर देते हैं फिर उसको समझने के लिये या तो ज्यादा वक्त जाता है या पूरा लेख अनदेखा कर आगे बढ‌ जाने में ही भलाई दिखती है।

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  2. आलोक भाई, आपने अत्यंत उपयोगी सुझाव दिए हैं। हमारे अनुवादक गण इन सुझावों पर जितनी तत्परता और सूझबूझ से अमल कर सकेंगे, अनुवाद में उतना ही निखार आता जाएगा। मेरा स्वयं भी ऐसा करने का भरसक प्रयास रहेगा।

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  3. अत्यंत उपयोगी सुझाव..बधाई

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  4. मुझे अंतिम सुझाव ज्यादा भाया.
    एक सुझाव मेरी तरफ से - अनुस्वर के लिए आधे 'न' तथा 'ण' का प्रयोग करे. जैसे 'अड़्ग' के स्थान पर 'अंग'.

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  5. बहुत आसान भाषा में और सुलझे हुए सुझाव दिए है। बधाई।

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  6. ...हँगरेज़ी या हिंगलिश मत लिखें....

    नहीं, कुछ मामलों में तो यह चलेगा. जैसे कि फ़ाइल - अंग्रेज़ी है. पर फ़ाइलों चलेगा. फ़ाइल्स नहीं!

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  7. माफ कीजिए विनय जी, गलती से मैंने ऊपर अपनी टिप्पणी में आपकी बजाय आलोक जी को संबोधित कर दिया था।

    कई वर्ष पूर्व केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो में प्रशिक्षण के दौरान मैंने भी अनुवादकों के लिए कुछ दिशानिर्देश तैयार किए थे, खोजता हूँ उसे, मिलने पर पोस्ट करूँगा।

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  8. बढ़िया लेख विनय! निरंतर के लिये हमें अक्सर अनुवाद करना होता है। मैं जानना चाहुंगा कि आपकी क्या राय है पत्रिका में अनुवाद के स्तर पर।

    कई सॉफ्टवेयर के हिन्दी स्थानीयकरण के दौरान मैंने यह पाया कि भाषा अत्यंत क्लिष्ट होती है और कई बार वाक्यों का विन्यास सही अनुवाद के चक्कर में अंग्रेज़ी की शैली में ही रह जाता है। कई दफा अनुवाद करते वक्त यह लगता है कि पुर्नलेखन की भी दरकार है, जैसा की हाल ही में एक पुस्तक समीक्षा का हिन्दी रुपांतरण करने बैठा तो तकरीबन २५ फीसदी लेख दुबारा लिखना पड़ा।

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  9. बड़ा ही व्यावहारिक सुझाव दिया है. धन्यवाद!
    'अनुवाद' जितना आसान है, 'बढ़िया अनुवाद' उतना ही मुश्किल.

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  10. तरुण:
    बिल्कुल. पर साथ ही #१७ भी देखें. यह भी ठीक नहीं कि हर दूसरे शब्द को अननुवादित ही छोड़ दिया जाए.

    संजय:
    अनुस्वर के लिए आधे 'न' तथा 'ण' का प्रयोग करे. जैसे 'अड़्ग' के स्थान पर 'अंग'.
    हर आधे 'न' और 'ण' के लिए अनुस्वार का प्रयोग हो सकता है, पर हर अनुस्वार के लिए आधे 'न' या 'ण' का नहीं. कारण है हिंदी का पंचमाक्षर नियम. अनुस्वार की ध्वनि इसके बाद आने वाले अक्षर के हिसाब से अलग अलग होती है. बहरहाल, मैंने इसका ज़िक्र इसलिये नहीं किया क्योंकि यह अनुवाद-विशिष्ट मुद्दा नहीं है, सामान्य वर्तनी मानकीकरण से संबंधित है. इस बारे में यहाँ ज़िक्र है (क्रमांक ११ देखें).

    रवि:
    जैसे कि फ़ाइल - अंग्रेज़ी है. पर फ़ाइलों चलेगा. फ़ाइल्स नहीं!
    हँगरेज़ी से मेरा तात्पर्य "कोड स्विचिंग" से है. यानि एक ही वाक्य में अनावश्यक तौर पर हिंदी और अंग्रेज़ी में लिखना. जैसे: 'केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अपनी डिक्शनरी से फ़ेल शब्द डिलीट करने की तैयारी कर रहा है'. आपने जो लिखा है वह तो ऊपर #१४ का उदाहरण है. 'फ़ाइल' जब हिंदी में ले लिया गया तो उसपर हिंदी व्याकरण के नियम ही लागू होंगे, अँगरेज़ी के नहीं.

    देबाशीष:
    निरंतर के अनुवादों का स्तर काफ़ी अच्छा है. दुरूह वाक्य विन्यास हिंदी अनुवादों की एक बड़ी समस्या है. इसका कारण अंग्रेज़ी और हिंदी की वाक्य संरचना के बुनियादी अंतर को नज़रअंदाज़ करना है. प्रायः ऐसी ग़लतियाँ हिंदी की बजाय अंग्रेज़ी ज़्यादा पढ़ने-लिखने वालों से अधिक होती हैं.

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  11. बहुत अछ्हा लिखा है।

    ट्रेन के लिये लौहपथगामिनी का प्रयोग किसी ने अनुवाद की क्लिष्टता का मजाक उड़ाने के लिये शुरू किया था। किन्तु विडंबना देखिये कि आजकल यह शब्द बहुतेरे लोगों की जबान पर रहता है।

    एक बात और स्पष्ट करनी चाहिये कि हिन्दी लिखते समय किस दशा में किसी हिन्दी शब्द का तुल्य अंगरेजी शब्द भी कोष्ठक में देना उचित होगा। और यह अंगरेजी शब्द देवनागरी में लिखना चाहिये या रोमन में?

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  12. मै आप की बात से पूरी तरह से सहमत हूँ कि भाषा को किलष्ट नही होना चाहिये और भाषा भी ऐसी ही हो जिसे हम लोग आसानी से समझ सकें। कुछ दिन पहले इसका एहसास मुझे तब हुआ जब मैने अपने ब्लाग पर जिस पोस्ट http://drprabhattandon.wordpress.com/2006/10/27/asoka/ में रोगों के हिन्दी नाम ढूंढ-2 कर लगाये उनमे से अधिकांश नामों को याद करना और समझाना दूसरों को बहुत ही मुशिकल था ।
    आनलाइन किसी अच्छे शब्दकोश (हिन्दी-अंग्रेजी और अंग्रेजी-हिन्दी ) के बारे मे बताइये।

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