जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास / ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा -केदारनाथ सिंह
इस टूल पर रेमिंगटन की बोर्ड का लेआउट तैयार कर साईट के प्रबंधक को भेज दिया है जवाब आते ही हिंदी कार्य करने वालों के लिये वितरण कर दिया जाएगा।
Nice post thanks for share This valuble knowledge
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